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वर्तमान युग समन्वय का अनुकूल युग है । भगवान महावीर का पच्चीस सौवाँ परिनिर्वाण-महोत्सव सार्वजनिक रूप में मनाया जाएगा । वीर-शासन में जो मतभेद उत्पन्न हुआ और हम अनेक संप्रदायों में विभाजित हुए, अब वह परिस्थिति भी नहीं रही । हम एकसूत्रता में न बंध सके तो मन-भेद को भुलाकर प्रेम और सहयोग द्वारा संगठित हो सकते हैं।
संपूर्ण विश्व में अपने सिद्धान्तों का प्रचार करने के लिए पहले हम में त्याग और समता-बुद्धि होना आवश्यक है । अब एक ही धर्म के अनुयायियों में एक दूसरे को मिथ्यादृष्टि कहना युग की पुकार नहीं है । युग की पुकार हमें मुनिश्री से जानना है । एक दूसरे के प्रति आदर रखना और अनेकता के गर्भ में विद्यमान एकता की ओर दृष्टि करने में ही हमारा हित और बुद्धिमत्ता है ।
__ सन् १८९३ में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के अनुयायी बनकर भारतीय धर्मदूत स्वामी विवेकानंद भौतिकवादी देश अमेरिका में गये और भारतीय संस्कृति का शंखनाद किया। शिकागो के विश्वधर्म-सम्मेलन का वह अपूर्व दश्य स्मरणीय है जब संसार के सभी दार्शनिक और तत्त्वज्ञानी स्वामीजी द्वारा विश्वधर्म की व्याख्या श्रवण कर मुग्ध हो गये थे। यद्यपि स्वामीजी वेदान्ती थे पर उन्होंने विश्व-कल्याण, सहयोग, सामंजस्य और अहिसा (युद्धविरोधी विचार) संबंधी भारतीय धर्म की विशेषताओं का और सर्वधर्म-समन्वय का प्रतिपादन कर विदेश में धर्म के प्रति महान् श्रद्धा एवं आकर्षण उत्पन्न किया था। हमें आज देश और विदेशों में अपने ऐसे ही व्यक्तित्व और भाषणों द्वारा एक नयी चेतना का सृजन करने वाले धर्म और संस्कृति के साधकों की जरूरत है, जो सोई हुई आत्माओं को प्रबुद्ध कर सकें। यह वातावरण किसी भी धर्म (संप्रदाय) की आलोचना का नहीं है; भावनात्मक एकता की ओर हमारा ध्यान जाना चाहिये । समंतभद्र स्वामी के उस सर्वोदय तीर्थ (अकेकान्त) को स्मरण रखा जाए जो समस्त आपत्तियों, वैर-विरोधों को दूर करने वाला और सर्व प्राणियों में मैत्री कराने वाला है। अपने इसी विशिष्ट व्यक्तित्व और शैली में दिये गये मधुर एवं ओजस्वी प्रवचनों में विश्वधर्म के मंत्रदाता ऋषि मुनिश्री विद्यानन्दजी हैं, जो कर्तरिका (कैंची) का काम न कर सूची (सुई) का काम करते हैं।
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__पंक-पथों पर चलता हुआ मनुष्य जब मृत्यु का अतिथि होता है, तब ऐसा लगता है कि लाल (मणि) गँवाकर कोई थका-हारा, लुटा-पिटा व्यक्ति श्मसान के शवों की शान्ति-भंग करने आ पहुँचा हो ।
-मुनि विद्यानन्द
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तीर्थंकर | अप्रैल १९७४
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