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________________ ४. शिवकोटि की भगवतीआराधना पर टिप्पण । पुराणसार संवत् १०८० में, पद्मचरित की टीका वि. सं. १०८७ में उत्तरपुराण का टिप्पण वि. सं. १०८० में राजा भोज के राज्यकाल में रचा । टीकाप्रशस्तियों में श्रीचन्द्र ने सागरसेन और प्रवचनसेन नामक दो सैद्धान्तिक विद्वानों का उल्लेख किया है, जो धारा निवासी थे। इससे स्पष्ट विदित होता है कि उस समय धारा में अनेक जैन विद्वान और आचार्य निवास करते थे। इनके गुरु का नाम श्रीनंदी था। १६. कवि दामोदर : विक्रम संवत १२८७ में ये गुर्जर देश से मालवा में आये और मालवा के सल्लखणपुर को देखकर संतुष्ट हो गये। ये मोड़ोत्तम वंश के थे। पिता का नाम कवि माल्हण था, जिसने दल्ह का चरित्र बनाया था। कवि के ज्येष्ठ भ्राता का नाम जिनदेव था। कवि दामोदर ने सल्लखणपुर में रहते हुए पृथ्वीधर के पुत्र रामचन्द्र के उपदेश एवं आदेश से तथा मल्हपुत्र नागदेव के अनुरोध से नेमिनाथ चरित्र वि. सं. १२८७ में परमारवंशीय राजा देवपाल के राज्य में बनाकर समाप्त किया। १७. भट्टारक श्रुतकीति : ये नंदी संघ बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छ के विद्वान् थे । त्रिभुवनमूर्ति के शिष्य थे । अपभ्रंश भाषा के विद्वान थे। आपकी उपलब्ध सभी रचनाओं में अपभ्रंश भाषा के पद्धाडया छन्द में रची गयी है। इनकी चार रचनाएँ उपलब्ध हैं : १. हरिवंश पुराण जेरहट नगर के नेनिमाथ चैत्यालय में संवत् १५५२ माघ कृष्ण पंचमी सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र के समय पूर्ण किया; २. धर्मपरीक्षा : इस ग्रंथ को भी संवत् १५५२ में बनाया। क्योंकि इसके रचे जाने का उल्लेख अपने दूसरे ग्रंथ परमेष्ठि प्रकाशसार में किया है; ३. परमेष्ठिप्रकाशसार : इसकी रचना वि. सं. १५५३ की श्रावक गुरुपंचमी के दिन मांडवगढ़ के दुर्ग और जोरहट नगर के नेमिश्नर जिनालय में हुई; ४. योगसार : यह ग्रंथ संवत् १५५२ मार्गसर महीने के शुक्ल पक्ष में रचा गया। इसमें गृहस्थोपयोगी सैद्धान्तिक बातों पर प्रकाश डाला गया है। साथ में कुछ चर्चा आदि का भी उल्लेख किया गया है। १८. कवि धनपाल : मूलतः ब्राह्मण थे। लघु भ्राता से जैनधर्म में दीक्षित हुए। पिता का नाम सर्वदेव था। वाक्पतिराज मुञ्ज की विद्वत्सभा के रत्न थे। मुञ्ज द्वारा इन्हें 'सरस्वती' की उपाधि दी गयी थी। संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं पर इनका समान अधिकार था। मुंज के सभासद होने से इनका समय ११ वीं सदी में निश्चित है। इन्होंने अनेक ग्रंथ लिखे, जो इस प्रकार हैं : .. १. पाइअलच्छी नाममाला-प्राकृतकोश, २. तिलकमंजरी : संस्कृत गद्यकाव्य, ३. अपने छोटे भाई शोभन मुनिकृत स्तोत्र, ग्रंथ पर संस्कृत टीका, ४. ऋषभ पंचाशिका-प्राकृत, ५. महावीर-स्तुति, ६. सत्यपुरीय, ७. महावीर-उत्साह-अप्रभ्रंश और ८. वीरथुई। २२२ तीर्थंकर | अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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