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________________ मूर्तियाँ जैन-देववाद के अध्ययन में विशेष सहायक हैं। चन्देल राजाओं के राज्यकाल में बंदेलखण्ड में जैनों के कई केन्द्र स्थापित हो गये थे, इसका प्रमाण भिन्न-भिन्न स्थानों में प्राप्त अवशेषों में मिलता है। छतरपुर के निकट ऊर्दमऊ में चन्देलकालीन जैन मंदिर है, जिसमें सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ की उत्तुंग किन्तु भव्य प्रतिमा विराजमान है। ऊर्दमऊ की कुछ मनोरम प्रतिमाएँ अब छतरपुर में डेरापहाड़ी के मंदिरों में लाकर स्थापित की गयी हैं। अहार और अजयगढ़ की जैन-पुरातत्त्व सामग्री चन्देलकालीन जैन-कला के अध्ययन के लिए विपुल न्यास समुपस्थित करती है। नौगांव के निकट स्थापित शासकीय संग्रहालय में चन्देलकालीन जैन-प्रतिमाओं का संग्रह है। उन प्रतिमाओं में से कई एक पर तात्कालीन लेख भी उत्कीर्ण हैं। इन लेखों का संग्रह प्रकाशित किया जाना आवश्यक है। पन्ना के निकट मोहेन्द्रा में बहुत-सी जैन प्रतिमाएँ अरक्षित अवस्था में बिखरी पड़ी बतायी जाती हैं। थोड़ीसी जैन प्रतिमाएँ पन्ना के छत्रसाल पार्क में भी एकत्र की गयी हैं। रीवा और शहडोल का बहुत-सा इलाका त्रिपुरी के कलचुरि राजवंश के साम्राज्य का अंग रहा है। कलचुरि राजाओं की धर्म-सहिष्णु नीति के फलस्वरूप कलचुरि साम्राज्य के विभिन्न केन्द्रों में जैन मंदिरों का निर्माण हुआ था। बीरसिंगपुर-पाली में सिद्धबाबा के नाम से ज्ञात ऋषभनाथ प्रतिमा खुले मैदान में तमाम ग्रामवासियों द्वारा पूजी जाती है। शहडोल के मंदिर में भी कुछ प्राचीन मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। सतना के निकट रामबन के संग्रहालय में आसपास के स्थानों से संग्रहीत जैन-शिल्प सुरक्षित हैं। मैहर-नागौद क्षेत्र की जैन कृतियाँ भी उल्लेखनीय हैं। नागौद के निकटवर्ती एक स्थान से प्राप्त अम्बिका की भव्य प्रतिमा इलाहाबाद के संग्रहालय में सुरक्षित है। उस प्रतिमा में अम्बिका के साथ अन्य तेईस शासन-यक्षियों की भी प्रतिमाएँ हैं जिनके नीचे उनके नाम उत्कीर्ण हैं। कलचरि काल में जबलपुर जिले के तेवर (प्राचीन त्रिपुरी), कारीतलाई, बिलहरी, बहरीबंद आदि स्थान प्रसिद्ध जैन केन्द्र रहे। कारीतलाई की अनेक जैन प्रतिमाएँ । अब रायपुर के संग्रहालय में प्रदर्शित हैं जबकि बिलहरी और तेवर के जैन शिल्प के नमूने जबलपुर के संग्रहालय में देखे जा सकते हैं। बहुरीबंद की शान्तिनाथ! प्रतिमा पर तत्कालीन लेख उत्कीर्ण हैं। टोला ग्राम की जैन प्रतिमाएँ भी अब प्रकाश में आ चुकी हैं। सिवनी जिले में लखनादौन, छपारा और घुनसौर में सुन्दर जैन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। नरसिंहपुर के निकट बरहठा की तीर्थंकर प्रतिमाएँ विशाल एवं भव्य हैं। छत्तीसगढ़ में मल्लार, रत्नपुर, सिरपुर, आरंग, राजिम, नगपुरा और कवर्धा आदि स्थानों में जैन पुरातत्त्व का विपुल संग्रह है। रत्नपुर के कलचुरि राजाओं के राज्य मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक २१५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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