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मध्यप्रदेश का जैन पुरातत्त्व बीरसिंगपुर-पाली में सिद्धबाबा के नाम से ज्ञात ऋषभनाथ प्रतिमा खुले मैदान में तमाम ग्रामवासियों द्वारा पूजी जाती है।
- बालचन्द्र जैन
जन पुरातत्त्व में मध्यप्रदेश बहुत धनी है। इसके गाँवों में यत्र-तत्र जैन अवशेष बिखरे पड़े हैं। मुक्तागिरि, मक्सी, ऊन, बावनगजा, सिद्धवरकूट, सोनागिर, पपौरा, रेशन्दीगिरि, द्रोणगिरि, अहार जैसे विख्यात और महत्त्वपूर्ण क्षेत्र इसी भू-भाग में स्थित हैं, जिनकी धर्म-यात्रा भारत के विभिन्न प्रदेशों के यात्रिक हजारों की संख्या में प्रति वर्ष किया करते हैं।
मध्यप्रदेश में प्राचीनतम जिन-प्रतिमाएँ विदिशा में प्राप्त हुई हैं। विदिशा प्राचीनकाल में न केवल सांस्कृतिक अपितु राजनैतिक कारणों से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा है। गुप्तवंशीय सम्राटों के समय में विदिशा के निकटवर्ती प्रदेश में भारतीय कला का अनूठा विकास हुआ। गुप्तकाल में विदिशा का प्रदेश जैनों का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था, इसके पुरातात्त्विक प्रमाण अब एकाधिक प्राप्त हो चुके हैं। उदयगिरि की गफा क्रमांक २० में उत्कीर्ण भित्ति-लेख से स्पष्ट है कि कुमारगुप्त के राज्यकाल में इस गुफा में भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा का निर्माण कराया गया था। विदिशा के ही एक मुहल्ले में हाल में प्राप्त तीन तीर्थंकर प्रतिमाओं की चरणचौकी पर उत्कीर्ण लेखों ने यह सिद्ध कर दिया है कि महाराजधिराज श्री रामगुप्त के आदेश से वहाँ कई जिन-प्रतिमाओं का निर्माण हुआ था। दो प्रतिमाओं पर क्रमश: चन्द्रप्रभ और पुष्पदन्त के नाम पढ़े गये हैं। मध्यकाल में भी विदिशा का क्षेत्र जैनों का प्रमुख केन्द्र बना रहा । ग्यारसपुर और बडोह पठारी में जैन पुरातत्व की सामग्री आज भी विद्यमान है। विदिशा के जिला-संग्रहालय में एकत्र की गयीं जैन प्रतिमाओं में से यक्षी 'अम्बिका' की मध्यकालीन प्रतिमा एक उत्कृष्ट कलाकृति है।
गुना, शिवपुरी, ग्वालियर और दतिया जिले के कई स्थान प्राचीन जैन कलाकृतियों से समुद्ध हैं। तुमैन (प्राचीन तुम्बवन) में लगभग ६५० ईस्वी की पार्श्वनाथ प्रतिमा प्राप्त हुई है। कदवाहा के निकटवर्ती ईदौर नामक ग्राम में कई भव्य
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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