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________________ में मुनिजनों का दर्शन प्राप्त कराया है। पूज्य मुनि विद्यानन्द भी दक्षिण भारत के एवं कर्नाटक प्रान्त के हैं, इसलिए कर्नाटक-साहित्य की परम्परा पर विचार करना यहाँ अप्रासंगिक नहीं है। जिस प्रान्त में मुनिश्री का जन्म हुआ है उस प्रान्त के आचार्य व काव्य-मनीषियों ने उत्तमोत्तम काव्य के सृजन से लोक को सुबुद्ध किया है। कर्नाटक-साहित्य की प्राचीनता श्रति-परम्परा से ज्ञात होता है कि कर्नाटक साहित्य का क्रम बहुत प्राचीन है, इतिहासातीत काल से ही इसका अस्तित्व था। कहा जाता है कि भगवान् आदि प्रभु ने अपनी दोनों पुत्रियों को अक्षराभ्यास व अंकाभ्यास कराया। इस प्रकरण में आचार्य जिनसेन ने विद्या के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए भगवान के मुख से विदुषी बनने की प्रेरणा दिलायी है। उसी संदर्भ में आदि प्रभु ने ब्राह्मी व सुंदरी को क्रमशः ब्राह्मी लिपि व अंकशास्त्र का अध्ययन कराया।* ब्राह्मी देवी को ब्राह्मी लिपि का अभ्यास कराया, अतः वह ब्राह्मी लिपि ही कन्नड लिपि मानी जाती है। ब्राह्मी और कन्नड लिपियों में कुछ अंतर है, अतएव यह लिपि 'हळे कन्नड' (पुराना कन्नड) के नाम से जानी जाती है। हळे कन्नड लिपि में लिखित सैकड़ों प्राचीन ग्रंथ हैं। ताड़पत्र के ग्रंथों में प्रायः यही लिपि है। यह इतिहासातीत काल का विषय है। हम अन्वेषक विद्वानों पर इसे छोड़े देते हैं; तथापि साहित्य सृजन के युग की दृष्टि से भी कर्नाटक साहित्यकारों का काल बहुत प्राचीन है। बहुत प्राचीन होने से ही हम इसका गुणगान नहीं करते हैं; क्योंकि प्राचीनता गुणोत्कर्ष का कारण नहीं है । साहित्यकारों ने कहा है कि-- पुराणमित्येव न साधु सर्व नचापिकाव्यं नवमित्यवद्यम् । संतः परीक्ष्यान्यतरावजंते मूढः परप्रत्ययनेयबुद्धिः। प्राचीन होने से ही सब कुछ अच्छे होते हैं यह बात नहीं। नवीन होने से ही कोई निर्दोष होता हैं यह भी नियम नहीं है। विवेकी सज्जन काव्य या साहित्य को इत्युक्त्वा मुहुराशास्त्र विस्तीर्णे हेमपट्टके, अधिवास्य स्वचित्तस्थां श्रुतदेवीं समर्पया ॥१०३।। विभुः करद्व येनाभ्यां लिखन्नक्षरमालिकां, उपादिशल्लिपि संख्या स्थानं चांकरनुक्रमात् ॥१०४।। ततो भगवतो वक्त्रान्निःसृतामक्षरावलीम् सिद्धं नम इति व्यक्त मंगलां सिद्ध मातृकाम् ॥१०॥ - पूर्वपुराण, पर्व १६. २०४ तीर्थंकर | अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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