SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सभ्यता को भेड़ियों की माँद से खींचा, निकाला, ये नहीं देंगे गवाही, वो नहीं देंगे हवाला? बोझ कंधों पर लिए सीधी चढ़ाई वह चढ़ा हम अनाभारी नहीं है किन्तु यह साक्षातssर हर मुखौटे को हमारे कर रहा है तार"..तार...... पारदर्शी आइना था आदमी से भी बड़ा आज अपने सामने जो कर गया हमको खड़ा. सूरज वह.......... पुरबिया क्षितिज पर जो उदित हुआ __ आज तक नहीं डूबा देखें आकाश और, सूरज भी देखे हैं, लेकिन उसके आगे इनके क्या लेखे हैं ? लोक-वेद ने गाया, मन आखिर मन ही है ___ आज तक नहीं ऊबा ताप और शीतलता साथ-साथ लिये हुए, दुखियारे दीनों के हाथों में हाथ लिये, मरुथल में कंटीली खजूर नहीं-- हरी-भरी-सी दूबा एक चुनौती-सा वह काल के लिए अब तक, दुर्निवार यात्रा पर चला जा रहा अनथक, पूछो मत साधू से जात-पाँत, ___ ग्राम, धाम, या सूबा. पुरबिया क्षितिज पर.... आज तक नहीं डूबा. ०० १२६ तीर्थंकर / अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy