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सभ्यता को भेड़ियों की माँद से खींचा, निकाला, ये नहीं देंगे गवाही, वो नहीं देंगे हवाला? बोझ कंधों पर लिए
सीधी चढ़ाई वह चढ़ा हम अनाभारी नहीं है किन्तु यह साक्षातssर हर मुखौटे को हमारे कर रहा है तार"..तार...... पारदर्शी आइना था
आदमी से भी बड़ा आज अपने सामने जो
कर गया हमको खड़ा.
सूरज वह.......... पुरबिया क्षितिज पर जो उदित हुआ
__ आज तक नहीं डूबा देखें आकाश और, सूरज भी देखे हैं, लेकिन उसके आगे इनके क्या लेखे हैं ? लोक-वेद ने गाया, मन आखिर मन ही है
___ आज तक नहीं ऊबा
ताप और शीतलता साथ-साथ लिये हुए, दुखियारे दीनों के हाथों में हाथ लिये, मरुथल में कंटीली खजूर नहीं--
हरी-भरी-सी दूबा
एक चुनौती-सा वह काल के लिए अब तक, दुर्निवार यात्रा पर चला जा रहा अनथक, पूछो मत साधू से जात-पाँत,
___ ग्राम, धाम, या सूबा. पुरबिया क्षितिज पर....
आज तक नहीं डूबा.
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तीर्थंकर / अप्रैल १९७४
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