SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरठ मैं पूज्य मुनिश्री विद्यानन्दजी के सम्पर्क में १९६७ में आया। यह मुनिश्री का मेरठ में प्रथम वर्षायोग था। उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं वक्ता होने के समाचार चारों ओर फैल चुके थे। मेरठ में मनिश्री का प्रवचन टाउन हॉल में होता था, उनके प्रभावशाली प्रवचनों की सारे शहर में बड़ी चर्चा थी। टाउन हॉल का प्रांगण खचा-खच भरा रहता था। महाराज-श्री बहुत अनुशासन-प्रिय व्यक्ति हैं। व्यवस्था करने में हमें प्रशिक्षण बहुत ही सतर्क रहना पड़ता था। उनकी सभा में बहुत शान्ति रहती थी जो प्रायः अन्य आमसभाओं में मुश्किल से ही दीखती है । जैन-जनेतर जत्थमजत्थ उमड़ पड़ते थे । एक दिन राजस्थान विधान-सभा के अध्यक्ष श्री निरंजननाथ आचार्य मुनिश्री की सभा में पधारे । टाउन हॉल का प्रांगण खचाखच भरा हुआ था। उनका प्रभावशाली भाषण हुआ; उन्होंने कहा-मैं महाराजश्री के सम्पर्क में जयपुर में आया था। उनकी विद्वत्ता, प्रभावशाली भाषणों एवं उत्कृष्ट चारित्र्य का मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा और मैं उनका शिष्य बन गया। महाराजश्री जयपुर से फीरोजाबाद, आगरा, दिल्ली आदि स्थानों की पदयात्रा करते-करते मेरठ पधारे हैं। जहाँ महाराजश्री जाते मैं भी वहीं पहुँच जाता हूँ। आज मैं उनके चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए स्वयं को बड़ा भाग्यशाली समझ रहा हूँ। महाराजश्री की वाणी में जादू है। उसमें मधुरता है । वे पक्के समन्वयवादी हैं । श्री विशम्भरसहाय प्रेमी हमारे शहर के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं पत्रकार रहे हैं। इसी वर्ष उनका देहान्त हो गया। वे कट्टर आर्यसमाजी एवं कांग्रेसी थे। शहर की बहुत-सी संस्थाओं से उनका सम्पर्क था। देश के बड़े-बड़े साहित्यकार एवं कवियों की उनके यहाँ भीड़ लगी रहती थी। वे भी महाराजश्री के व्यक्तित्व एवं विद्वत्ता से प्रभावित होकर उनके परम शिष्य बन गये थे। वे प्रायः प्रति दिन नये-नये साहित्यकारों एवं कवियों को महाराजश्री के दर्शनार्थ लाते थे। सभी साहित्यकार, पत्रकार एवं कवि महाराजश्री की वाणी सुनकर गद्गद् हो उठते थे। एक दिन प्रेमीजी महाराजश्री के पास बनारस विश्वविद्यालय के भूतपूर्व उपकुलपति डा. मंगलदेव शास्त्री को लाये और वे काफी वृद्ध हैं; उच्चकोटि के विद्वान् हैं। वेदों एवं उपनिषदों के साथसाथ उन्होंने जैनधर्म का भी काफी अध्ययन किया है। उन्होंने काफी समय तक महाराजश्री से चर्चा की। महाराजश्री ने भी वैदिक ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया है। जब उन्होंने श्रीमद्भागवत में तीर्थंकर ऋषभदेव और श्रमण-संस्कृति की चर्चा की तो डॉ. साहब महाराजश्री से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने जैनधर्म पर एक स्वतंत्र ग्रन्थ लिखने की अभिलाषा व्यक्त की और महाराज के चरणों में नत-मस्तक हो अपनी आदरांजलि अर्पित की। इसके बाद वे जब कभी भी मेरठ आये, तब महाराजश्री के दर्शनार्थ अवश्य पधारे। इस प्रकार मैंने देखा कि स्वर्गीय श्री विश्वम्भरसहाय प्रेमी मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक १०५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy