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________________ अनुसन्धान-७८ करि असती पोषण घj, करि मुखिप्रीय तिहांथी काल हो । योनि घणी मांहिं भमी, एक गिरि छई अरण्य विचाल हो ॥१३॥ द० ॥ तिहां हाथी बह हाथिणी, करिणीनी कुखि तेह हो । आवि कलभपणि उपनो, मुखप्रीयनु जीव छि जेह हो ॥१४॥ द० ॥ बोली ढाल ए बारमी, न्यानसागर काफी राग हो । पात्र कुपात्र पटंतरो, लहि देवू दान सुजागि हो ॥१५॥ द० ॥ दूहा जे जूथाधिप हाथीओ, विषयतणि रसि रत्ति । कलभ जणइं जे कामिनी, मारइ ते मयमत्त ।१।। [ ढाल-१३] नाहानु नाहलो रे - ए देशी ॥ हवइं जूउ चिंतई हाथिणी रे, गरभवती ते त्यांहि । धिग् धिग् मोहनी रे... करमतणइ योगई करी रे, जउ गज प्रसवीश आंहि ॥१॥ धिग् धिग् मोहनी रे ॥ तउ पति माहरउ पापीउ रे, सुतनई मारसि साहि । धिग् धिग् मोहनी रे ॥ पहिला पणि नंदन इणि रे, मार्या छि पग गाहि ॥२॥ धि० ॥ देई दंतूसल को हण्या रे, को हण्या पाय प्रहारि । धि० । कोईक सुंडा दंडसुं रे, नाखिआ महीतलि मारी ॥३॥ धि० ॥ पहिलइ तो तिण कारणिं रे, करीइ यतन जो “काइ । धि० । किमहीं तु सूत उगरि रे, मांडिउ चिंति उपाय ॥४॥ धि० ॥ यूथ सकल चरवा भणी रे, जव अटवीमां जाय । धि० । हलूइ हलूइ हीडती रे, आवि खोडइ पाय ॥५॥ धि० ॥ पाछिलिथी आवी मिलि रे, पहुर बि च्यारिं तेह । धि० । मयगल कहि दुखेणी घणुं रे, रांक-३ बिच्यारी एह ॥६॥ धि० । इम कुंजरनि कुंजरी रे, उपाई वेसास । धि० । दिन बीजइ त्रीजइ तिकारे, किहारिं को मिलि तास ॥७॥ धि० । ८१. जे पार्थे - क॥ ८२. उपाय - ब ॥ ८३. एक - क॥
SR No.520580
Book TitleAnusandhan 2019 10 SrNo 78
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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