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________________ . अनुसन्धान-७८ श्यामा संग तजी अबहुं, जाई जिनके पासि आलोअण ले उचलं, फिरि महाव्रत उल्हासि ॥७॥ मुं० इउं चिंती आयउ गुणी, जिहां हि°५ वीर जिणंद तीन प्रदक्षिण देयकई, प्रणमइ पद अरविंद ॥८॥ मुं० लोचनके जलधारसुं, पाउं पखालि दोय चरणे सीस नमावतो, गदगद स्वरि कहि रोय ६ ॥९॥ मुं० गुनही गरिब निवाज हुं, कीनो व्रत को भंग त्रिभुवनपति तारो प्रभु, छोड्यो गणिका संग ॥१०॥ मुं० दि फिर चारित वीरजी, नंदिषेणकुं हेव रजोहरण मुखवस्त्रिका, दिइं तब सासणदेव ॥११॥ मुं० समझाए उपदेश दे[इ], बार वरसमि जेह्य सहस तिआलिस दोयसइं, एके उंणा तेह ॥१२॥ मुं० न्यानसागरि कही नेहस्यु, एह इग्यारमी ढाल समतारस से ती बणी, मीठी अमीअ रसाल ॥१३॥ मुं० दूहा इंद्रभूति अणगार तवं, गोयम सुधर बजीर परम भगत पूछई प्रसन, कहो जगनायक वीर ॥१॥ नंदिषेण अणगार इणि, चढतई मन परिणामि रमणि पंचसय परिहरी, लीधुं तुं व्रत स्वामि ॥२॥ वली चारित मुंकी रहिओ, किम गणिका घर वासि भोगकरम बांधिउं किहां, भगवन तेह प्रकासि ॥३॥ पूरवभवि इणि तप किउ, केइ दत्त दीधुं कांई भोगनिकाचित जेहथी, बांध्यं ते कहो साईं ॥४॥ परउपगारी कहि प्रभु, सुणि गोअम विरतंत तुं पूरवभव एहनो, राखी मन एकंत ।।५।। . ७५. रहि - क, इह - उ। ७६. सोय - अ। ७७. मुनि - अ।
SR No.520580
Book TitleAnusandhan 2019 10 SrNo 78
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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