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ओक्टोबर - २०१९
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श्री ज्ञानसागर-कृत
नंदिषेण रास एं६० ॥
दूहा ॥ सुत सिद्धारथ भूपनो, वरधमान जिनचंद प्रणमूं तेह परमेसरू, उच्छग परमाणंद ॥१॥ नंदिषेण मुनिवरतणा, गातां गुण उल्लास सेवक संभारी करी, देयो वचन विलास ॥२॥ माणिकसागर मुझरे गुरु, महासत्वी माहंत प्रणमुं तेहना पययुगल, मुझ गुरु महिमावंत ॥३॥ महानिसीथमां वीरनिं, पूछइं गोयमस्वामि (म) छट्ठई अध्ययनि भलु, श्रुतमहिमा हितकाम ॥४॥ कहु प्रभु सूत्र भणे जि के, चिंतइ करइ वखाण अनाचार ते आचरि, रहि थिर चारित्र ठाण ।।५।। अक्षर एक सिद्धांतनो, जेह भणिया मुनि जाण अनाचार तेह आचरि, सुणि गोअम गुण खाणि(ण) ॥६॥ दस पूरवधर दीपतो, नंदिषेण मुनिराज किम रहिओ गणिकाने घरे, मुंकी श्रुतनी लाज ॥७॥ भोग निकाचित तेहनी, चरम शरीरी तेह विण वेदि किम नींपजइ, असरीरी गुणगेह ॥८॥ किम चारित्त छंडी वली, तेणि मंडिओ घरवास तास चरित्त सुणयो भविक, धुरिथी लीलविलास ॥९॥
पाठभेद - १. श्री सारदाय नमामी(मि) नमोनमः । - अ। ए६०॥ऐनमः । -क २. मुनिवरू - अ.ब.क.ड। १. ए६० ॥ सकल पंडित मानस मानस मानस प्रवर ३. चीत्त ठामि - ब ।
चारु पंडित श्री पु.श्री तेजकुशल गणि गुरु - क्रमण पंकजेभ्यो नमः ॥ - ड