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ओक्टोबर - २०१९
सप्त हस्तनी प्रतिमा सही, एहवी वात जिणेसरि कही, राजप्रश्नीय वृत्ति दूषी२७ करी, थापी सप्त हस्तनी खरी. ५३ जो जो सागर- मतिज्ञान, सूत्र वृत्ति दूष्यां अभिमानि, श्रीजिनवचन ऊथापणहार, केहओ किम लहसइ भवनुं पार. ५४ बोल-१२ पुंनिम अमांसि सदा आराधि, यती श्रावकनई शिवसुख साधि, केवल श्रावकनई आराध्य जे कहइ, सही ते आगम अर्थ नवि लहइ. ५५
बोल-१३ श्राद्धविधिनइं दर्शनशुद्धि, प्रकरण सूत्र वृत्ति प्रसिद्धि, इत्यादिक ग्रंथ अणुसारि, सुविहित साधु परंपर सार. ५६ परपक्षीकृत चैत्य शिवाय, वांदिवा पूजिवा योग्य जणाय, सागर कहइ परपक्षी-चैत्य, होलीराय समान अधीत्य२९. ५७ बोल-१४ दशाश्रुतस्कंध चूरण(णि) भणी, उपदेश रत्नाकर वृत्ति घणी, समकित दृष्टि सुधा कह्या, अथवा मिथ्यामति सवि ग्रह्या. ५८ जेहनइं धर्म तणी रुचि होइ, क्रियावादी कहीजइ सोइ, सागर कहइ. विण समकितधारि(री), क्रियावादी नवि होइ लगारि (२). ५९
बोल-१५ पंचासक चूरणि सविशेष, सामाचारी तणइं विशेष, रात्री पोसह श्रावक करइ, चउथइ प्रहरि सामायक धरइ. ६० एहवो सूत्र कहिओ विचार, ते ऊथापीनइं निरधार, सागर कहइ उत्सूत्र कहिउं एह, पूछी निर्णय करयो तेह. ६१ बोल-१६ षट्दर्शन समुच्चय वृत्ति ठाम, योगशास्त्र वृत्ति अभिराम, इत्यादिक ग्रंथ अणुसारि, दिगंबरादिक जैन विचारि. ६२ भण्या गण्या पणि मूरख तेह, लोक व्यवहार न जाणइं नेह, सागर कहइ मिथ्यामति लीन, परपक्षी नवि कहीइ जैन. ६३ बोल-१७ पंचासक सूत्र वृत्ति मझारि, ललित-विस्तरा वृत्ति संभारि, तीर्थंकर पासइ दोइ तत्त्व, आराधक जाणी सवे सत्त्व. ६४ देवतत्त्व गुरुतत्त्व प्रधान, तीर्थंकर कह्नइ हुइ समान, तिहां गुरुतत्त्व न मानइं जेह, जिनशासनथी बाहिर तेह. ६५ बोल-१८