SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जून - २०१९ असुं कही जिणवर जव रहीया, नागराज हीयडइ गहगहीया आव्या आपणे ठामि तो जयो जयो आ० ॥२३॥ कंचण बलाओ(0) गमो(यो) हे जाणी, पास तणी प्रतिमा तिहां आंणी देहरासर नित पुजतो जयो जयो देहरासर नित पूजतो ॥२४॥ ॥ ढाल ॥ [२] हवे निसुणो इ हो आवीया ओ श्री संखेसर पास तो ते संखेपे हुं कहुं ओ जिम विधन विनास तो ॥२५॥ द्वारिका नयरी कृष्ण नृप मे, राजगृही जरासंधि तो वयर भाव बेहुने घणां अ, पूरव कर्मनो बंध तो ॥२६॥ दूत मोकल्यो जरासंधि मे, मानो माहरि आंण तो के सज्ज थाओ झूझवीओ, के लेइं नासो प्राण तो ॥२७॥ वचन सुंणी वयरी तणा अ, केसव कीध प्रयांण तो कटक लेईने संचर्या मे, जरासंधिनि आंण तो ॥२८॥ दल बे हुई झूझें भला , पडें सुभटनी कोडि [तो] कायर केती ईम कहें ओ, सामी संकट छोडि तो [॥२९।।] जरासंधि मुकी जरा अ, कटक थयुं अचेत तो श्रीपति मनि चि(चिं)ता थइ अ, जिनने पूछे कहें संकेत तो ॥३०॥ नेमिनाथ कहें कृष्ण सुणो अ, ओ छे विषम विरोध तो अन्न पांन सवि परिहरो अ, नागराज आराधी तो ॥३१॥ तेहनें देहरासरि अछे ए पार्श्वनाथ, बिंब तो तेणें न्हवणे जरा अ, काज सीजे अविलंब तो ॥३२॥ मुणि वचन हरि हरखीयो ओ, कीधा त्रण उपवास तो नागराज तव आवीआ अ, तुठा आपण पास तो ॥३३।। न्हवण करी च्छाट्युं सहु अ, ऊठी सुभटनी कोडि तो दामोदर प्रणमी करीओ रहीआ बे कर जोडी तो ॥३४॥
SR No.520579
Book TitleAnusandhan 2019 07 SrNo 77
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy