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________________ अनुसन्धान-७७ देवराज दलदरसें नडीओ, भमतां देशांतर रण चडियो श्रुतसागर सूरी पाए पडिओ ।। करुणानिधि रे मुनिवर विश्वदयाल, विधिस्युं दियो रे चिंतामणि मंत्रसार विनये लियो रे अक्षर बीज अढार ॥ प्रेमे० ॥२॥ पार्श्वनाथ नजरें आराध्यो, वशि वनखण्डे विधिस्युं साध्यो सुरसानिध बहु पुण्ये वाध्यो ठकुराइ छाजे रे भोगवे राज्य पडुर, दांन अवाजे रे नासे दलदर दुर ए प्रभु राजे रे आज ते नयन हजुर | प्रेमे० ॥३॥ राजनगर रसरंग रहावे, सामलि मुरति सांई सुहावें । चिंतामण प्रभु नाम धरावे वंछित पूरे रे रयण चिंतामणि जेम, चिंता चुरे रे रवि उदये जिम हेम, रेहत हजुरे रे दर्शन फर्शन प्रेम || प्रेमे० ॥४॥ सेठ वखतसा पूत्र नगीनो, सेठ सुरजमल्ल प्रभु गुणनीलो, जिणे उद्धार कियो जिनजीनो मूल गभारो रे अजपा जापर्नु ठाण, मंडप सारो रे मां- स्वर्गविमान, दिलमां धारो रे प्रभु गुणनां बहुमान ॥ प्रेमे० ॥५॥ नौतन चैत्य करावें सार, तेहथी अष्टगुणुं निरधार, फल पामें ते जिरण उधार पण एक प्राणि रे न्याय द्रव्य अनुसार, खरचे जाणि रे, निजधन चित्त उदार, समये वांणी रे संप्रतीने अधिकार ॥ प्रेमे० ॥६॥ वामानंदन नित नित वंदन, दर्शन निर्मल शीतलचंदन भवतति संचित पाप निकंदन ध्यायकताइं रे अन्वय ने व्यतिरेक, ध्यानघटाई रे भवजल तरिया अनेक विश्वगवाइं रे श्रीशुभवीरनी टेक... ॥ प्रेमे० ॥७॥ इति श्री चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवनं ॥
SR No.520579
Book TitleAnusandhan 2019 07 SrNo 77
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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