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________________ अनुसन्धान-७७ वाचक पुण्यसागरकृत अंजनासुन्दरी-पवनञ्जयरास (खण्ड ३) __ - सं. प्रा. अनिला दलाल वाचक श्रीपुण्यसागरे वि.सं. १६८९मां रचेला 'अञ्जनासुन्दरीपवनञ्जयरास'ना पहेला २ खण्डो आ पूर्वेना अङ्कोमा क्रमशः प्रगट थई गया छे. अत्रे तेनो त्रीजो अने छेल्लो खण्ड आपवामां आवेल छे. कर्ता वादिवेताल शान्तिसूरिना पीपलगच्छना उपाध्याय छे. त्रिभुवनपति प्रणमी करी शिवरमणी दातार बहूंली मति कर बोलस्युं त्रीजउ खंड उदार. पडसू धी घृत अकठां मोला खाद अखाद मीठाई त्रीजी मलई तो हवेइ सखर सवाद. त्रीजा खंड कह्या विना कोई स्वाद न होइ सांभलतां पंडित मने रंग न लागइ कोई. तिणि कारणे भवियण सुणो सरस कथा संकेत पाप पणासण सुखकरण गुणहीत कारण हेत. अंजना तिहां रहितां हुआ कोई दिह वितीत इहाथी आगलि सांभलो किम वाधा परतीत. ___ ढाल झूबखारी प्रथमा - राग केदारउ गिरि परिसर रहतां थकां केइक वउल्या दीह सोभागी सांभलो जलनई कारण ओकली दासी जाय अबीह... सो... ६ परबत उपरि पेखिउं मुनिवर ओक महंत... सो. ध्यान धरी ऊभो रह्यो त्रिकरण गप्ति ओकंत... सो... ७ दासी करइ तसु वंदना आवी राणी पासि... सो. बाई मई अंक पेखीउं गरुवो साधु सुवास... सो....
SR No.520579
Book TitleAnusandhan 2019 07 SrNo 77
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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