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आवरणचित्र-परिचय
आ एक दुर्लभ चित्र छे. २०मी सदीमां आलेखायेला एक कल्पसूत्रनी प्रतिनुं आ चित्र, कलामर्मज्ञ विद्वान् मुनिराज श्रीधुरन्धरविजयजी द्वारा प्राप्त थयु छे. राजपूत पेइन्टिंगना नामे जाणीती राजस्थानी कलाशैलीनुं आ चित्र छे.
तीर्थङ्कर अथवा कोई पुरुष दीक्षा लेवा प्रस्थान करे तेनुं, तथा ते केशलोच करे तेनुं चित्र तो अनेक प्रतोमा जोवा मळे; कल्पसूत्रमा तो खास. परन्तु एक स्त्रीनी दीक्षायात्रा तथा लुञ्चनक्रियाने चित्राङ्कित करतुं आ एक विलक्षण तथा अजोड चित्र छे.
असल राजपूताणीने माटे होय ते प्रकारनी पालखी, तेमां बेठेली (दीक्षोत्सुक) स्त्री; तेनां वस्त्रो अलंकृत छतां श्वेतप्राय छे. ते पालखीने २ आगळ तथा २ पाछळ एम ४ स्त्रीओए उपाडी छे. पाछळ चालती ३ स्त्री तथा आगळ चालतां ४ पुरुषो, दीक्षाना वरघोडा- स्वरूप रचे छे. ते बधांनां वस्त्रपरिधान अलंकृत अने रंगरंगीन छे ते, तेम ज साचुकला जणातां वृक्षो, वादळां वगेरे राजपूत शैलीनां विशिष्ट ओळखचिह्नो छे.
वृक्ष तळे ओटला पर श्वेत, स्त्रीजनोचित वस्त्रो परिधान करेल स्त्री पोताना केशनो लोच करे छे, ते एक विशिष्ट दृश्य छे.
कल्पसूत्रना जे पत्रमा आ चित्र छे तेमां लखायेलो पाठ उकेलीए तो ते भगवान आदिनाथनी दीक्षानुं वर्णन करतो पाठ छे. ए पत्रमा एक स्त्रीनी दीक्षानुं चित्र होवू ते खरेखर विलक्षण लागे छे. आवरण ४ पर आ चित्र अने तेना ज अंश आवरण १ पर मूकवामां आव्या छे.