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________________ जान्युआरी- २०१९ ५७ संसार सागर घोर, खाणि भ्रमैं जीव ठौर, कीधौं नांहि सर्म [...] रे ॥ भ० ॥१२॥ आप समो राखउ प्राण हिंसा दूरि टालिकइं, हिंसा इह अनरर्थ खाणि, हिंसा तिहां पाप जाणि, जीवहिंसा छोडि प्राण, राग-द्वेष गालिकें । हिंसा हितें रोग-सोग, खांण-पीण हीण भोग, बहू दुःख सहइ लोग, हिंसाहीतई भालकें, सयंभुम चक्रवर्ति, देखउ जमदगपुत्त, सातमी नरग पत्त, हिंसाहीतई भालकें ॥ भ० ॥१३।। अभयदान षटकाय-जीवनकुं दीजीयइ, अभयदान वडो धर्म, टालें हे दुकृत कर्म, उ रहै मिथ्या भर्म, काहेकौं जे कीजीयै । देखउ राख्यो पारपति, मेघरथ नरपति, सींचाणाकुं कहइ नृप, मेरो मंस लीजीइ । अभयदान दीयउ तिन, चक्रवति हूउ जिन, जिन शांतिनाथ दिन-दिन, त्रिभुवन पूजीइ ॥ भ० ॥१४॥ काहेकुं बोलत इह जूठ निराताल रे, झूठी भाषा माहादुष्ट, पापहीकुं करइ पुष्ट, लोक सहु करइ षष्ठ, तुं तो है लबाड रे । झूठाबोलउ कहइ लोय, मानें न वचन कोय, तीरयंच होत सोय, आगम संभाल रे । देखो वसुराजा भोर, मीसर वचन बोल, सातमी नरग घोर, गयउ करी काल रे ॥ भ० ॥१५॥ विमल वचन सहू सुखकार है, विमल वचन भण्य, सुखदाई सहू जन, जानुकि सुनत कन, अमृतकी धार है। सिध जे साधक नर, ताकी विद्या सिध कर, संसेवित मुनिवर, सत्य जग सार है,
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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