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________________ १३९ जान्युआरी- २०१९ 'काप'नुं मूळ 'कल्प' मळे छे. कल्प → कप्प → काप. _ 'गौतममाई' योगसाधना सम्बन्धी रचना छे, योगप्रक्रियानुं शाब्दिक वर्णन अने तेना प्रभाव । महिमानुं गुणगान एमां छे. आ अंकनुं नजराणुं कही शकाय एवी रचना छे : 'उपदेशमाला - सर्व कथानक षट्पदाः' ८१ छप्पानी आ रचना मौलिक रचना छे, साहित्यिक दृष्टिए नावीन्यपूर्ण अने प्रौढ कृति छे; अपभ्रंश भाषानी एक सुन्दर रचना अहीं प्रथमवार प्रगट थाय छे. कृति शुद्धप्रायः छे, छतां केटलांक सुधारा सूचवी शकाय एम छे : ___ छ. १२ : [असि उज्]ने स्थाने [अजुत्त] कल्पी शकाय एम छे. छ. २५मां 'गयमक्खसि' छे त्यां 'गयमत्थय वसि' विचारी शकाय. छ. ३५ : सूरि यासि'मां 'पासि' वधु बेसे छे. 'सव्वं' छे त्यां 'सच्चं' होवू जोइए. 'जागि'ने स्थाने 'जगि', 'दुक्खिन्त'ने बदले 'दक्खिन्न' पाठ वधु संगत बने छे. छ. ३७मां 'संख' छे त्यां 'रक्ख' अपेक्षित छे. आनी पांचमी पंक्ति आ रीते वांचवी जोईए : ___ ओ दियइ दान ओ सुद्ध तव ओ बिहु गुण... छ. ६० : 'सहि नाणि' नहि, 'अहिनाणि'. 'अंगारयमई' नहि, 'अंगारयमद्द'. छ. ६७ : 'पूर्व वासर' नहि, ‘पर्ववासर'; 'सुणविचारिन्त' नहि, 'सुणवि चारित्त'. छ. ७३ : 'सुनाण' = 'सुयनाण'; 'नाडिउ' = 'नडिउ'. अर्थ छे : अवहेलना करी, विडम्बना करी. गा. ७४मां 'नडियो' छे ज्यां आ अर्थ स्पष्ट सूचित थाय छे. छ. ७७मां 'सुखइ' छे, शब्दकोशमां पण एम ज आप्यो छे, अर्थ 'सुरपति' लख्यो छे. गाथामां 'सुरवई' छे ज; तो पछी 'सुखइ' क्यांथी आव्यो? सुरपति अर्थ होय एवो 'सुखइ' शब्द छ ज नहि. आम केम थयुं ते समजवा जेवं छे. र अने व पासे लखाय त्यारे 'ख' नो भ्रम थाय छे. अहीं आवं थयु जणाय छे. (कम्पोझीटरो । ओपरेटरो आवी भूल करता होय छे. प्रेसकोपी । लेख तैयार करती वखते र अने व चोख्खा लखवा, अने ख नो पहेलो छेडो लंबावीने दण्ड साथे जोडवाथी अक्षर स्पष्ट थशे). छ. ८०मां 'विद्धउ' छे त्यां 'दिद्धउ' जोईए.
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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