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________________ जान्युआरी- २०१९ १२३ 'जीवसमास' की मलधारी हेमचन्द्रीया वृत्ति में २७४वीं गाथा की व्याख्या करते हुए कहा है कि "महादण्डक में चौथे देवलोक के देवों से तीसरे देवलोक के देवों को संख्यातगुणा कहा है ।" यथा "यतो महादण्डकेऽनुत्तरविमानवासिभ्य आनतकल्पं यावत् सङ्ख्यातगुणैव वृद्धिरुक्ता । माहेन्द्रदेवेभ्योऽपि सनत्कुमारदेवाः सङ्ख्येयगुणाः । ईशानदेवेभ्योऽपि सौधर्मदेवाः सङ्ख्येयगुणाः प्रोक्ता इति ।" । ___ - पृष्ठ २३२ (जैन ग्रन्थ प्रकाशन समिति - खम्भात, ई. सन् १९९४) यहाँ वृत्तिकार स्पष्ट कह रहे हैं कि श्रीमत् प्रज्ञापना सूत्र के तृतीय -पद-गत महादण्डक (९८ बोलों की अल्पबहुत्व) में चौथे देवलोक माहेन्द्र के देवों से तीसरे देवलोक सनत्कुमार के देवों को संख्येयगुणा कहा है । वृत्तिकार के इस कथन का विशेष महत्त्व इस कारण से है कि वे श्रीमत् प्रज्ञापना सूत्र गत महादण्डक के पाठ के आधार से जीवसमासकार के उस कथन को असंगत बता रहे हैं, जिसमें जीवसमासकार माहेन्द्र देवों से सनत्कुमार देवों तथा ईशान देवों से सौधर्म देवों को असंख्येयगुण बता रहे हैं। तात्पर्य यह है कि मलधारी हेमचन्द्रसूरिजी के अनुसार "श्रीमत् प्रज्ञापना सूत्र के तृतीय पद में महादण्डक में चौथे देवलोक के देवों से तीसरे देवलोक के देव संख्येयगुण ही है, असंख्येयगुण नहीं है ।" २ बिन्दु क्रमाङ्क - ३ जीवसमास की इसी वृत्ति में १५२वीं गाथा की व्याख्या करते हुए वृत्तिकार ने श्रीमत् प्रज्ञापना सूत्र के तृतीयपदगत महादण्डक को अविकल रूप से उद्धृत किया है । यहाँ भी चतुर्थ देवलोक के देवों से तृतीय देवलोक के देवों को संख्येयगुण बताया है । यथा_ 'माहिंदे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, सणंकुमारे कप्पे देवा संखेज्जगुणा' यद्यपि आगमोदय समिति (पृष्ठ १४४ - अन्तिम पंक्ति, ई. सन् १९२७) तथा श्री जैन ग्रन्थ प्रकाशन समिति, खम्भात (पृष्ठ १२८ - पंक्ति १९, ई. सन् १९९४) से प्रकाशित 'जीवसमास (सटीक)' में यहाँ 'सणंकुमारे
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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