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अनुसन्धान-७६
सुणितू रे वल्लहा दुख जे मइ सुणिया । पार न पामुं अकइ जीभइ कहिया ।। जीवन वेतइ बापड धुरि लगइ । कर्म करीनइ नरगि पडिउ रगइ ॥४५॥ रगइ नरगि पडिउ प्राणी कर्म कीधा सोहिलिया । जीवनइं संसारि भमता जिनदेव दरसणि दोहिल्या । सुगुरुनी हु सीख मागइ का रेलइ जीवडु । सेसा सागर माहि पडतां धरइ समकित दीवडु ॥४६।। भरतार नत्रउ त्रूटउ ताहरूं साहमी नात्रउ ताहरइ माहरु । तुझनई रे मझनई सील सदा सही भोग न भोगवउ तुझ साथि कहिइं ॥४७॥ न भोगवउं वली भोग तुझसिप्र(उ) विषय विरूउ विष जिसिउ । नि पाप मनि हवइ मइ कीधा सिणगार न गमइ मइ मझ किसिउ । संसार मोहे भमइ भोगी अभोगा(गी)नई सुख घणां । संभोग करी तिलमात्र तुझसिउं नरगनां दुख देखणा ॥४८॥ घरणीनइ वचनइ कंत वयरागीउ । ओ हू संसार विष समउ लागीउ । बाखि(पे) बोलावी बेटउ छल करी । राजि बइसारी बाल बहि धरी ॥४९॥ बाहि धरीअ बालक राजि थापी घरे वीस वरसंइ रही । तिहां थ(छ)काय वू(छ)टी जिसीय आवी तिसिउं सील लीधु सही । चारित्र पालइ कमलाइ केवली गुरु बे थया । विजयभद्र मुनिवर इम जंपइ मोक्षमंदिरि माहि गया ॥५०॥
॥ इति श्रीकमलावतीनु रास समाप्त ॥
C/o. A-2, वात्सल्य फ्लेट, ६३, वसंतकुंज सोसायटी,
नवा शारदामंदिर रोड, पालडी, अमदावाद-७