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अनुसन्धान-७६
चौपन दिना रे अंतरै, आसो अमाविस जांण पांम्या मुगत ज पांमसै, श्री नेम निरवाण ॥३४॥
॥ कलसा ॥ तपगछ राजा, वडदिवाजा, श्रीविजयदयासूरिसरो महिमंडले जस कीर्ति वाधी, पुरवै परछया खरो तस सीस वृधि वजीर सोभै, अमृतविजय श्री मुज गुरौ व्रणव्या मै नेम राजुल, लक्ष्मीसुख जय वरौ ॥३५।।
ईति स्तवन
२. नेमनाथजी रो बारमासो
(राग : केदारो) गोखि बेठी राजुल गोरी, सखी वात सुणो मोरी यदुराय चल्यो मुझ चोरी, तुम जाय मनावो दोरी, लाल
प्रीतम प्रीतम करती ॥१॥ पुरवली प्रीत संभालि, मुझ घर आवो रथ वाली तुम्ह करो रमत वाली, ईम बोलई राजूल बाली, लाल
प्रीतम प्रीतम करती ॥२॥ सखी श्रावण महिने माति, वीजलडी झबुकिं राति घनघोर सुणी दिनराति, प्रीतम वीण मुझ फाटी छाति, लाल
प्रीतम प्रीतम करती ॥३॥ सखी भादरवई सरोवर भरियां, सब धेनु चरई वनहरियं इण रतें पीउडे परहरीइं, राजूल रोदन घर भरियं, लाल
प्रीतम प्रीतम करती ॥४॥ आसो म(मा)स ठामि आली, गीत गाइं रंग रसाली रजनी सोइ अजूआली, नाह वीण मुज थाई विकराली, लाल
प्रीतम प्रीतम करती ॥५॥