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________________ निवेदन सम्पादन तेमज संशोधनमा द्विविध अङ्गो छ : बाह्य अने आन्तरिक. कोई एक कृति विषे काम करतां तेना कर्ता, रचनाना तथा लेखनना समयनु, पाठy, अर्थ- - इत्यादि बाबतोनुं निर्धारण करवू ते आन्तरिक संशोधन गणाय. तो ते कृतिनी हाथपोथी परथी प्रतिलिपि करवी, पाठभेदो नोंधवा, लखाय के छपाय त्यारे प्रूफवाचन द्वारा अशुद्धिनुं निवारण करवू ते बधुं बाह्य संशोधन अथवा संशोधन-कार्यनां बाह्य अङ्गरूप गणाय. प्रश्न ए थाय छे के प्रूफवाचन (Proofreading) ए संशोधन, अङ्ग गणाय के केम? केमके आपणे त्यां सामान्यतः एवं जोवा मळे छे के जे संशोधके कृति विषे शोध-कार्य कर्यु होय ते विद्वान् ते कृतिनुं प्रूफ वांचवानुं कार्य नथी करता होता; ते काम माटे अलग प्रूफवाचक (Proofreader) रखातो होय छे. युनिवर्सिटीओ के ते कक्षानी संस्थाओ तरफथी थतां प्रकाशन-आयोजनोमां आQ खास जोवा मळतुं होय छे. सामयिकोनां तथा प्रकाशन-गृहोनां प्रकाशनो माटे पण आ प्रकारनी ज व्यवस्था थती होय छे. आनो अर्थ ए के संशोधक के सम्पादक विद्वान् प्रूफवाचनना कामने हलकुं अथवा मजूरी, काम गणे छे, अने तेवू काम हुं के अमे नहि करीए - एवी तेमनी मान्यता होय छे. परिणामे गमे ते प्रूफरीडर पासे प्रूफो तपासाववामां आवे, तेमने मूळ कृति, लखाण के विषय साथे कशी निसबत ना होय, तेना शब्दो, वाक्यरचना, विरामचिह्नो इत्यादिथी ते अजाण होय, अने वधुमां वधु ते पोतानी सामेनी मूळ प्रत (Script) साथे मेळवीने मुद्रणमां जवा देशे. फलतः कृति के लेख घणीवार अशुद्ध के भूलभरेल छपाय छे. हवे जो ए प्रूफ तेना संशोधक-लेखक ज वांचे तो घणीवार तेने सम्पादित कृतिमा रही गयेली क्षतिओ जडे, लखवामां पोताना हाथे थयेली भूलो ध्यानमां आवे, पदच्छेद, अर्थसङ्गति, विरामचिह्ननी योजना वगेरेनी दृष्टिए सुधारा सूझे, पाठान्तर तरीकेना पाठने मूळ पाठ तरीके लेवानुं स्पष्ट थाय, आq घjबधुं थाय, अने तो कृति के लखाण वधु सारा ने साचा स्वरूपमा उपलब्ध थई शके. आ रीते विचारवामां आवे तो, प्रूफवाचन पण संशोधन- एक अने बहु महत्त्व- अङ्ग
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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