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________________ सप्टेम्बर - २०१८ ३२१ वेंटत्थाई सुरेहिं जलथलयं दिव्वकुसुमनीहारिं । पयरंति समन्तेणं दसद्धवन्नं कुसुमवासं ॥३॥ मणिकणगरयणचित्तं चउद्दिसि तोरणे विउव्वंति । सच्छत्तसालभंजिय-मयरद्धयचिंघसंठाणे ॥४॥ तिण्णि य पायारवरे रयणविचित्ते तहिं सुरगणिंदा । मणिकंचणकविसीसग,-विभूसिए ते विउव्वेंति ॥५॥ अब्भंतर-मज्झ-बहि, विमाणजोइभवणाहिवकयाउ। पागारा तिण्णि भवे रयणे-कणगे य रयणे य ॥६॥ इत्यादि आयाहिण पुव्वमुहो तिदिसि पडिरूवगा उ देवकया । जेट्ठगणी अण्णो वा दाहिणपुव्वे अदूरंमि ॥ इत्यादिक पाठ जाणिवौ। श्री महावीरस्वामीजीकै सातमै पाठे(टैं) श्री भद्रबाहुस्वामी श्रुतकेवली चउदैद्दे पूर्वधारी दशाश्रुतस्कंध, व्यवहार, बृहत्कल्पप्रमुख सुत्रकर्ता आचार्यै आवश्यक-नियुक्तिमें ए त्रिगडैको अधिकार प्रगटपणै कह्यौ है । बत्तीससुत्र मानेगा सो ए भी मानेंगा । बत्तीसांमें नियुक्ति सकारी है । सो पाठ प्रथम लिख्यौ है। तथा श्री महावीरस्वामी एक रातिमैं अडतालीस कोस विहार करी मज्झिमाया पावापुरी आए । इसकौ पाठ आवश्यकनियुक्तिसुत्रमैं तौ इतनो है - उप्पण्णंमि अणंते नटुंमि य छाउमत्थिए नाणे । राईए संपत्तो महसेणवणंमि उज्जाणे ॥१॥ अमरनररायमहिओ पत्तो धम्मवरचक्कवट्टित्तं । बीयंपि समोसरणं पावाए मज्झिमाए उ॥२॥ इसकै अर्थमे लिख्यौ है । ततो द्वादशयोजनेषु मध्यमापुरी इत्यादि । तिणसैं बारै योजनका अडतालीस कोस भया । चूंभिक गांमसें पावापुरी ४८ स कोस है। पूर्व देसमें प्रसिद्ध है। इस वातमैं संदेह नहीं है। पावापुरी क्षत्रियकुंडग्राम कुम्मारगाम प्रमुख सब ठिकाणा प्राय देख आए है ।२। साधु लब्धि फोरवै सो अधिकार भगवतीजी प्रमुख बहुत शास्त्रांमें है। सो पाठ पहिली पानांमे लिख्यौ है ।३। तथा श्री महावीरस्वामी छद्मस्थपणैमैं मूलगा मौनपणै कोई रह्या नही । बहुत तौ मौनपण रह्या है। जरूर काम पड्यां दोय च्यारवार बोल्या भी है। श्री
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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