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________________ ३१८ अनुसन्धान-७५(२) दसभेदे सत्य कयौं है। तिहां थापना सत्य पिण गिण्यो है। तीर्थंकरदेव गणधरदेव जिणकुं सत्य कहै तिणकु तै झूठ ठहिरानै । जैसो ऊणुंसें वधतां ज्ञान तेरेमें कहांसें प्रगट्या ? । तथा नाम निक्षेपौ ते मार्ने अरु थापना निक्षेपो न मानें ! थापनामै भगवानपणौ नही तौ नाममें भगवानपणौ कहां से आव्यौ ?। थापना उत्थापी तौ नाम भी मानणा तुझकुं योग्य नही है। तब तैं चउवीसा(स)त्थो किस वास्तै गुणता है ?। 'आधी रांड आधी सुहाग' - ए वालौ साग तैं भी आदर्यो । मत खेंचकरकै संसार समुद्र मैं क्यूं बूडता हैं ?। और असमझ जीवांकुं क्युं बोडै है?। समदृष्टि कर भगवान की वाणी हृदयमें तो श्रीदसवैकालिक प्रमुख सुत्रमे कह्यौ है; "चित्रलिखि जिहां स्त्री होय तिहा पिण साधूकुं न रहणा' । उत्य स्त्रीमें तो स्त्रीपणौ कोई नही । साधूकुं उपसर्ग भी नही करती है। तो भगवानजी उहां रहणा क्यु वरज्या?। इसका परमार्थ ए है, उत्य स्त्रीकुं भी देख्यां विकार ऊपजे तिणमैं वरज्या है। जो उसाकुं देख्यां विकार उपजै हे; तौ भगवानकी प्रतिमा निरविकार महांसौम्य शांत मुद्रायें विराजमान सो देख्या हलूकर्मी जीवांकुं शांत भाव क्युं न ऊपजै? । प्रायें उपजै ही। जतनसें नाम जप्यां भगवान जैसै याद आवैते है, वैसै जिनप्रतिमा देख्यां भगवानको स्वरूप विशेषपणे याद आवै है। तिनसें जिनप्रतिमा भव्य जीवकुं महा उपगारको कारण है । इस वास्तै ही ज सुत्रां में ठाम ठांम 'जिनप्रतिमा जिन सारखी' कही है। सुत्रांकौ पाठ आगै लिखेंगे।" परं; ढुंढियो कहै; "मैं बत्तीस आगम में और न मानु" । तिनकु पूछणा, "किणही स्त्रीकै भर्तार मर गयो । मट्टीको भर्तार बणायकै पास रख्या काम न सरै ? इत्यादिक दृष्टांत तें प्ररूपे हैं। सो बत्तीसामांहिलै किण सुत्रमें है? । सो हमारे ताई नाम बताय । अरु हमनें चित्रलिखित स्त्रीका दृष्टांत कह्या है, सो तो दसवैकालिक प्रमुख सुत्रनें(में) प्रगट है ते कह्या । जो दृष्टांत सो सुत्रामें नही है तै मन उठाया प्ररूपै है । तब तो तैं प्रत्यक्ष मृषावादी हैं । क्युं झूठी मन उठाई वात प्ररूपकै बापडां भौलां जीवांकुं दुर्गतिमें पाडै है ?। तथा तैं कहता हैं, आगे प्रतिमा किणे पूजी? श्री भगवतीसुत्रमांहे - 'तुंगिया नगरीके श्रावक साधुवंदनकुं गए तव ष्णान (स्नान) करी भगवानकी पूजा करकै पीछे गए' । भगवतीजी सुत्रमांहे 'हाया कयबलिकम्मा' - असो प्रगट पाठ है । बलिकर्म नाम पूजाको है । कदाचित् तें कहेंगा, उणें कुलदेवी पूजी । सो वात संभवै नही । उणें समकित उचर्यो तबही ज
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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