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________________ सप्टेम्बर - २०१८ २७१ १६२ जानी मानी सवि तणा जीव हुआ दिलगीर घर भणी चाल्या सहू वडवागिया वजीर. मारग लंघी आविया पुर उपवन सहू कोय गयो वधाउ आगलइ हरखी सघलो लोय. १६३ सामहीयास्यु परवरी महीलइ करइ प्रवेस छांडी अंजनासुंदरी प्रीति नहि लवलेस. १६४ ढाळ - ७ : मोरीयानी, राग - धन्यासी मन विलखाणी अंजना सती करम चढावई दोस किम दुख विण खमीइ बूझीयई प्राणीया छोड द्यइ सोस... १६५ मन आंकणी० प्रेम छडी रह्यो आंतरइं नवि धरइ निजर संतोष अहनिसि अति करतउ रहइ पाछिला वयरनो पोष. १६६ मन० मनुषके लाखस्युं पर भर्यो वलि भर्या द्रव्य भंडार ते सवि नारिनइ पीउ विना सुनडा पड्या रे ढंढार. १६७ मन० रूप गुण तेज चित्त चातुरी पहिरीआ विविध शृंगार कंत विण क्षीण दीसई तिके दिन शिलास्युं झबकार. १६८ मन० कंत माली वनिता लता प्रीति जल तन भर्यो (?) कूप सींच्या विण किम नीसरई नव नवपल्लव रूप १६९ मन० विरह दाधी देही कमलनी दीसती वदन विछाय कंत छाया विना कयुं थीई जी हरित वरणी तसु काय. १७० मुखि गई वाणी प्रीत्यालूइ जी घट थकी सहू गयो प्रेम पति विना आमणदूमणी जी यूथ भ्रष्टी मृगी जेम. १७१ तिणि समई आवि दासी कहइं जी म धरि बाई मनई दुख प्रीति दृढ राखीउं धरम स्युं जी जेहथी पामीइ सुख. हटकी लीजई हीयो आपणो जी कारिमउ ओ सहु नेह सुपनमांहि लही संपदा जी जागीया निष्फल तेह. १७३ ईम सुणी निय मन वालीउ जी राखीउ धरमसु रंग देव पूजा दया अणुसरइ जी परिहरइ पापरउ संग. १७२ १७४
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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