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________________ सप्टेम्बर - २०१८ २३७ एक पांन भेदीनि बीजे, जेहवे ते सूइ जाई जी। वर्द्धमांन जिन गोयमने कहे, असंख्य समय तिहां थाय जी ॥श्री० ॥१७॥ असंख्य समय एक आवलि जांणो, क्षुल्लक भव हिवे तेह जी । जे दो शत छप्पन्न आवलीन, जीवत जीवे तेह जी ॥श्री० ॥१८॥ चुंआलिस आउलि साढि, छइंतालीस झाझेरी जी। सासोस्वास एतले एक थाय, आघी वात घणेरी जी ॥श्री० ॥१९॥ सासोस्वासमां जीव निगोदि, करे सतर भव पूरा जी।। साढी चोराणुं आउली उपर, अधिकी जांणो सूरा जी ॥श्री० ॥२०॥ मुहुरत एकनी बे घडी काची, शास्त्र तणे परमाण जी, साडत्रीससे त्रिहोत्तर तेहना, सासोस्वास वखांण जी ॥श्री० ॥२१॥ ते मांहि हवे जीव निगोदि, भव करे केती वार जी, पांसठ सहस ने पंच सयां वली, छत्रीस वार विचार जी ॥श्री० ॥२२॥ एक लाख ने तेर हजार, एकसो नेऊ ऊदार जी, एक दिवसना सासोस्वासा, केवलीने अधिकार जी ॥श्री० ॥२३।। छासठ सहस अॅसी अधिकेरा, उगणीस लाख भलेरा जी, कर्मप्रपंचें एक दिवसमां, जीव करे भवफेरा जी ॥श्री० ॥२४॥ तेत्रीस लाख पंचाणुं सहसा, सात शतक अवधार जी, एक मासना एह ऊसासा, गणित तणे अणुहार जी ॥श्री० ॥२५॥ पंच कोडि निव्यासी लखा, च्यारसें ब्यासी हजार जी एतली वार ए मरी निगोदीउ, एकण मास मझार जी ॥श्री० ॥२६।। च्यार कोडी ने सात ज लक्खा, वलि सहसा अडयाल जी, च्यार शतक अधिका संख्याई, सासोस्वास विसाल जी ॥श्री० ॥२७॥ एक वरसमां सित्त्येर कोडी, लाख सित्योतर वार जी, सहस अठ्यासी आठसें अंके, एह लीइं अवतार जी ॥श्री० ॥२८॥ ॥ दूहा ॥ मरणा अवतरणा करी, स्वामी काल अनंत । परावर्त पुद्गल कीया, तेहनो कहुं वृतंत ॥२९॥ जिम केकी गिरिवर रहे, मेहा दूरी वास ।। तिम जिनजी तुम ओलगुं, निसुणो ए अरदास ॥३०॥
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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