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अनुसन्धान-७५(२)
सु० घनोदधि प्रमुख अछइ, भूमिनइ पणि आधार सु० स्वप्रतिष्टित आकाश छइ, ए तो विशेष विचार सु० ७ सु० जग सघलो जे उपरि जिन, मुरनि(मुनि)वरनो विहार सु० तरु पणि ऊगइ तिहां किणइ, सर्वंसहा सुखकार सु० ८ सु० सोवनगिरि मुख गिरिवरा, जिहां जिनवरनां गेह सु० शास्त्रे संख्या तेहनी, नमतां वाधइ नेह सु० सु० तुं पणि ऊगी परवतें, हुं पणि तेहनो पुत्र सु० हुं भाई तुं भइणिली, एहमां नवि उत्सुत्र सु० सु० सात धातु कनकादिकें, चालइ जग व्यवहार सु० दांमें थाई दीपतो, तेह करइ उपगार सु० सु० गढमढ मंदर मालियां, जिनमूरति सुकमाल सु० स्युं न होइ अम जातिथी, अवस्थायी बहु काल सु० १२ सु० मणिमहोरा हरइ जहिरनें, जेहनी शक्ति अनंत
सु० झवहिर जाति प्रवालीया, मुक्ताफल झलकंत सु० १३ सु० यतः
हस्तिमस्तकदंतौ तु, दंष्ट्रा श्वानवराहयोः
मेघो भुजंगमो वेणु-मत्स्यो मौक्तिकयोनयः १ सु० शाक पाक शुभ तिहां लगें, जिहां लगें माहि लुंण सु० ते पणि मनमां धारवो, ए पणि पृथिवी कइ कुण सु० १४ सु० पाक न हुइ तरु भाजनइ, तरु भूषण नवि होय । सु० भूषण मणि सोवनतणां, जग झगमगतां जोइ सु० १५ सु० पुढवीकाय ए इणीपरें, उपगारी तुं जांणि सु० श्रीभावप्रभसूरि कहइ, तुं एकांत म ताणि सु०
दुहा धूरत धीठ ओरीसडा, सांभलि रे तुं साच स्युं जगमा जोतां थकां, तें आवी रही लाछि जे तें माथु उपाडीउं, मुझस्युं करवा वाद घेटानि परि घुरहों, सर्वि सुण्यो तव साद