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अनुसन्धान-७५(२ )
समोसरण त्रिगडुं कर्यु, मांहि चउमुख हो जिनधर्म कहंत कि आगलि नृप भरतनी, करी मूरति हो कर जोडि रहंत कि... ८ श्री० नाभि अनें मरुदेवानी, करी मूरति हो प्रासाद सहीत कि सुनंदा - सुमंगलानी, निपाई हो मूरति धारी प्रीति कि... ९ श्री० कीधी ब्राह्मी सुंदरी, वली मूरति हो नवाणुं भ्रात कि
वरण लंछन जिनमांनथी, चुवीसी हो थापी विख्यात कि... १० श्री०
इम तीरथनी मालिका, निपाई हो वर्द्धकीइं वेग कि गोमुख अनें चक्केसरी, इत्यादिक हो मूरति अतिरेक कि... ११ श्री० दूहा
भरत नृपति चित्त हरखिया, थया पूरण प्रासाद महाप्रतिष्ठाना हवइ, वाज्या वाजित्रनाद नरवर सुरवर किन्नरा, मिल्या भविकना थाट गान गाइ देवांगना, सुहव करि गहिगाट इम जलथानें आवीया, वधाव्यां नालेर ढोल निसानां वाजतइ, दिगपति बलि ऊदेर रयण कनक रूपातणा, मृन्मय कुंभ अनेक वारि वर पुरुषे भर्यां, विधि विस्तार विवेक जल उच्छवनें इम करी, आण्यां निरमल अंभ स्नात्र साज सघला सजइ, स्नात्रक पुरुष अभ मनोहर मूली ओषधी, मोती रयण प्रवाल तीर्थोदकमाटी शुभा वाला गंध विशाल अगर कपूर केसर सुकडि, वाव्या वली जवार प्रतिष्ठा उपयोगिनी, वस्तु सज्जी सवि सार वरगडूआ सरावलां, नवग्रह नंदावत्त ओषधी अंजन पीसणी, विहि सजाई विचित्त
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