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________________ १८९ सप्टेम्बर - २०१८ पाठक श्रीराजसोमजी विरचित अट्ठोत्तर सो गुण नवकारवाली स्तवन सं - आर्य मेहुलप्रभसागर नवकारवाली जिसे माला, जपमाला आदि भी कहा जाता है, उसके आधारित प्रस्तुत रचना में १०८ मणकों के कारणभूत पञ्च परमेष्ठी के १०८ गुणों का नामोल्लेख किया गया है। पाठक राजसोमजी महाराजने चार ढाल में रचित वर्णनात्मक रचना में पुरानी हिन्दी भाषा में इस कृति का गुम्फन किया है। इस स्तवन की रचना प्रायः विक्रम की अठारहवीं सदी के प्रारम्भ में हुई है। हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग-३ के अनुसार पाठक श्री राजसोमजी खरतरगच्छ के सुप्रसिद्ध महोपाध्याय श्री समयसुन्दरजी के शिष्य वादी श्री हर्षनन्दनजी के प्रशिष्य एवं मुनिश्री जयकीर्तिजी के शिष्य थे । समयनिधान वाचक विरचित सुसढ चोपाई र.सं. १७३१(७) में प्रशस्ति दोहों में श्री राजसोमजी की गुरु परम्परा इस प्रकार ही दी है - “श्री जिनचंदसूरीसरू रे, सकलचंद तसु सीस । समयसुंदर पाठक सदा रे, जयवंता जगदीस ||७|| पाटोधर तसु परगडा रे, कंदवा-कुद्दाल । हरषनंदन वाचक कही रे, प्रीछई बालगोपाल ||८|| जयकीरत वाचक जयो रे, सीहां सीह सुशिष्य । राजसोम पाठक रिघू(धूरि) रे, प्रसिद्ध है तासु प्रशिष्य ॥९॥" आपने श्रावक आराधना भाषा, पञ्चसन्धि व्याकरण बालावबोध, इरियावही मिथ्यादुष्कृत बालावबोध आदि के साथ स्फुट स्तवनादि कृतियों की रचना की है। सम्पादन में अभय जैन ग्रन्थालय बीकानेर की प्रति का उपयोग किया गया है। हस्तप्रति क्रमाङ्क ८८९० में दो पत्र हैं । प्रति पत्र में प्रायः तेरह पंक्ति और पैंतीस अक्षर अङ्कित हैं। पत्र के किनारे जीर्णप्रायः होने से जर्जरित है। लेखन सुवाच्य है। प्रशस्ति के अनुसार यह प्रति विक्रम संवत् १८८० के आश्विन कृष्णा तृतीया के दिन विक्रमपुर (बीकानेर अथवा बीकमपुर) में पण्डित धनसुख ने लिखी है। हस्तप्रति की प्रतिलिपि उपलब्ध करवाने हेतु अभय जैन ग्रन्थालय बीकानेर
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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