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अनुसन्धान-७५(२)
गूढा - प्रहेलिका - समस्या - हरियाली (३)
सं. - उपा. भुवनचन्द्र
हस्तलिखित ग्रन्थभण्डारोमां प्रकीर्ण पत्रो मोटी संख्यामा प्रायः होय छे. छूटा पानां/चिठ्ठीओमां कर्ताए अथवा संग्रह करनार पोताने जोइती वस्तुओ - स्तवन, सज्झाय - दूहा-पद-शास्त्रीय के ऐतिहासिक नोंधो-श्लोको वगेरे - लखी राखे. कोई नानीमोटी प्रतना अन्तिम पत्रमा - छेडे थोडी जगा बची होय त्यां पण आवी रचनाओ लखी राखवानी एक परिपाटी ज बनी गएली. गुटका (बांधेली चोपडी जेवी हस्तप्रत) तो एक प्रकारनी नोंधपोथी ज गणाय. गुटकाओमां जुदा जुदा समये अने जुदा जुदा हाथे आवी नानी-मोटी रचनाओ लखाती रहेती. गूढा-प्रहेलिका-समस्या-हरियाली जेवी रचनाओ आवा प्रकीर्ण पत्रोमां तथा गुटकाओमां ज मोटा भागे स्थान पामती होय छे. कोईक रसिक जन गूढा वगेरे माटे स्वतन्त्र प्रति पण लखी-लखावी राखता.
___आवा विविध स्रोतमांथी सांपडेली आवी रचनाओनो एक संचय अहीं रजू कर्यो छे. समस्या / प्रहेलिकाना उत्तर क्यांक प्रतमांथी मळया, क्यांक विचारीने शोध्या छे, जे कृतिना अंते कौंसमां आप्या छे. ज्यां जवाब नथी मळ्यो त्यां कौंस खाली राख्यो छे.
हीआली -
समरथ नारी छइ अति सारी, पण ते बालकूआरी; मानवीनी घरि ऊपनी, तेहनी परणी तउ ब्रह्मचारी, समरथ नारी० १ ए नारी त्रणि नान(मि?) प्रसिद्धि, उत्तम घरि लहिइ; डाहा पंडित नर जुउ विचारी, ए नारी कुण कहिइ, समरथ नारी० २ पंच वर्ण हारि जडावि, सिर राखडी धरावी; सूत्रबाणइ मेर माहा रमती, हिडि(?) सती सील रहावि, समरथ नारी० ३ ए नारी नव हिंडि पाली, देस-देसांतरि जाइ; आहार करंती कहि न दीसि, पण ते दूबली न थाइ, समरथ नारी० ४ आठ नारी दोइ पुरख मलीनइ, ए नारी नीपाइ; सगा-सणेज सहु देखता, बापि बेटी जाइ, समरथ नारी० ५ [माला]