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________________ १५६ अनुसन्धान-७५(२) दूहा एह तत्त्व तरुमुल जसां तरुसम चारित्र जोय । सर्वथी देशथी सेवता, साधु श्रावक होय ॥१॥ अथ ढाल: [नांणपद भजिई रे जगतसुहंकरु - ए देशी ॥] चारित्र सेवो रें चतुर चिंतितमणी, जेहमें गुण छें अनंता रे । सामान्यें सित्तेर ते दाखिया, सत्तर पण इह गुणवंता रे, चारित्रसेवोरे चतुर चिंतितमणी ॥ १॥ ए आंकणी ॥ सर्ववीरतिना रे पंच प्रकार छें, पुलाक बकुस पडिसेवा रे । कुसिलमें कषायकुसिल वली, निग्रंथ सनातक देवा रे ॥चा० ॥२॥ पहिला त्रण गुणठाण नवम सुधि, सराग पर्यंतनें साधें रे । संजम कषायकुसिलवंत जें, निर्ग्रथ अग्र दोयें लाधें रे ॥चा० ॥३॥ स्नातक तेरमें चउदमें केवलि, निर्ग्रथ कषाय चउ जाव रे 1 नाण अवधि सुधित्रण जे धुरना, पांमें ते चरण प्रभाव रे ||चा० ||४|| संजम पंच इहां वली भाषियां, तेह सामायक प्रमुख रे । त्रण नियंठा रे एहमें होय तां, कषाय चतुर सनमुख रे ||चा० ||५|| छेहला होय ते पंचम चरणमें, महाविदेहें पंच राजें रे । इहां हाल बिजुं त्रिजुं होय छें, पुलाक तो पुरव साजें रे ॥चा० ॥६॥ दोय अंत टालि रे जहन सुधर्म लहें, उकोसय धूर सहसार रे । बकुस पडिसेवा रे बारांत कषाय जे, उतर निर्ग्रथ एहि धार रे ||चा० ||७|| एक भावें रे स्नातक सिव वरें, विराधितव्रत असुराइ रे । कहें सुधर्मा रे अंग ते पंचमें, वली संजम जे अवराइ रे ॥ चा० ||८|| सामायक धूर पछिम दोय मली, त्रण ए विदेहें सदाई रे । आ कालें दोय धूरनां इहां लहो, दशमें पणमें तुलाई रे ॥० ॥९॥ देशचारित्र रे दश दोय व्रतसुं, तेहना अनेक प्रकार रे । देशविरति पंचम गुणठाणमें, उकोस अचुत ओही सार रे ॥ चा० ||१०|| जहन सुधर्मा रे समकित बंध ए, विरति महद फल आपें रे । जिम द्रुमकनें रे कमल सेठनें, संजमि संगें तेह व्यापें रे ॥चा० ॥११॥
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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