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________________ १९६ अनुसन्धान-७५(१) लघुभाष्य के एवं चूर्णि के भी भावों को एवं प्रतिपादनों को विशदता के साथ समझाया न होता, तो ये ग्रन्थ हमारे लिए केवल पूजनीय व दर्शनीय ही बने रहते । वृत्ति के आलोक में हमने कितना भव्य और अपरिचित ज्ञान पाया है यह केवल अवर्ण्य बात ही है। हम यानी श्रीसंघ इन श्रुतधर महापुरुषों के प्रति सदैव कृतज्ञ रहेगा। इन भगवंतों के पद-कमलों में भी हम हमारी वन्दना रखते हैं। ___ वर्तमान युग में श्रीजिनागमों के एवं अन्य शास्त्रों के वैज्ञानिक एवं आधारभूत संशोधन - सम्पादन का प्रशस्त, महान् उपकारक एवं शासनसेवा - श्रुतोपासनारूप कार्य, आगमप्रभाकर पूज्यपाद मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी महाराज ने प्रारंभ किया है। हमारा लक्ष्य, उन्हीं के पथ पर चलने का रहा है। हम कितना चल पाए ? या ठीक से चले या नहीं? इसका निरीक्षण व निर्णय तो, इस मार्ग पर चलने में निष्णात सुज्ञ विद्वज्जन ही कर सकते हैं। लेकिन हमारा आदर्श पथ तो वो ही रहा है। इस कार्य को करते समय हम सैंकडो बार उनका स्मरण करते रहे हैं। आज जब यह पहला खण्ड पूर्णतः तैयार होने जा रहा है तब हम उनके चरणों में हमारी विनम्र वन्दना अर्ज करते हैं। अन्त में, हमारी सज्जता एवं सूझ-बूझ के अनुसार इस सम्पादन-कार्य को करने का हमने प्रयत्न व परिश्रम किया है। फिर भी, इस कार्य में जानते - न जानते, कहीं भी, श्रीजिनेश्वर प्रभु की आज्ञा से विपरीत बात हुई हो, और भाष्यकार, चूर्णिकार, वृत्तिकार एवं बृहद्भाष्यकार आदि सर्व शास्त्रकारों की आशातना या अनादर हो जाय ऐसा शब्द / वाक्यप्रयोग अनजाने में हो गया हो, अथवा पूरे ग्रन्थ के सम्पादन में कोई क्षति हो गई हो, तो उन सब के लिए हम श्रीसंघ के प्रति नतमस्तक होकर क्षमायाचना करते हैं। हमारी क्षति के प्रति हमारा ध्यान खींचने के लिए मध्यस्थ सुज्ञजनों को हमारी विनम्र प्रार्थना है । अस्तु । नन्दनवन तीर्थ - तगडी दीपावली - श्रीवीर-कल्याणक पर्व, सं. २०७३ आसो कृष्ण अमावस विजयशीलचन्द्रसूरि एवं मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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