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सप्टेम्बर - २०१८
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शब्द-प्रयोग मिलते हैं उन में त,द,ध,प,व इत्यादि वर्णश्रुति अत्यधिक प्रमाण में है। उदाहरणार्थ -
बातर - बादर, पातुता - प्रावृता, पतीतंत - प्रतितंत्र, तिणमो - इणमो, वेताणि - वेदानीं - वा इदानीम् । यहाँ सर्वत्र 'त' श्रुति है। कधमेध - कथमेतत्, भणध - भणथ, कधा - कथा, कधग - कतक, धू - हू । यहाँ 'ध' श्रुति । तथा तोधी - ओधी - ओही । तोगऽणुतोगो - योगणुयोगो । तोभावण - ओभावण । ऐसे आद्य 'ओ - यो' का 'तो' । पेति – बेति, वाधण्णं – पाधण्णं, संकेस - संक्लेश, पुरेखडे - पुरस्कृते इत्यादि।
सामेते - सामी - स्वामी एते । साग - सावग - श्रावक । साक - श्रावक । साकेते - सावके (श्रावके) एते । अण्णं धुवयारं - अन्नं हु उवयारं । ऐसे अनेक प्रयोग बृहद्भाष्य में मिलते हैं। इन प्रयोगों को देखकर स्पष्ट होता है कि इस ग्रन्थ में भाषा का पुरातन स्वरूप सुरक्षित रहा है और अत एव वह भाषास्वरूप इस ग्रन्थ की प्राचीनता का साधक प्रमाण बन सकता है। किसी भाषाशास्त्री के लिए अध्ययन करने लायक यह ग्रन्थ है।
__चूर्णि की प्रतियाँ देखें तो पता चलेगा कि उन प्रतियों में जो भाषास्वरूप है उस पर महाराष्ट्री प्राकृत का गहरा प्रभाव स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है। वैसा प्रभाव बृहद्भाष्य की भाषा के उपर नहि हुआ लगता । चूणि की एक भी प्रति में, प्रायः, ऐसी पुरातन प्राकृत भाषा प्रयुक्त हुई हो ऐसी जानकारी नहि मिलती। उसका एक तात्पर्य ऐसा भी हो सकता है स्वयं चूर्णिकार ने ही ग्रन्थ में परवर्तीभाषा-स्वरूप प्रयोजा है। अगर यह कल्पना उचित हो, तो चूर्णि का बृहद्भाष्य से परवर्तित्व स्वयमेव सिद्ध हो जाएगा।
उपयुक्त प्रतियाँ एवं सम्पादनपद्धति इस चूर्णिग्रन्थ के सम्पादनहेतु हमने पाँच प्रतियों का उपयोग किया है : ४ ताडपत्रप्रतियाँ, १ कागजपत्रप्रति । कागजपोथी का उपयोग अत्यन्त अल्प ही हुआ है, जहाँ हुआ वहाँ पा.२ संज्ञा से उसका जिक्र किया गया है, क्योंकि वह भी पाटण के भण्डार की थी। ताडपत्रप्रतियों का सामान्य परिचय इस प्रकार है -
१. पा. संज्ञक प्रति । पाटण-स्थित श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानभण्डार की यह