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________________ सप्टेम्बर - २०१८ १८५ यहाँ सही पाठ एवं अर्थ के लिए बृहद्भाष्य का आधार लेना अनिवार्य है। यदि बृहद्भाष्य न मिला होता, और अद्ययावत् नहि ही था, तो हम कितने विचित्र अर्थघटन पर अड जाते ?, बृहद्भाष्य गा. १५१४-१६ का सूक्ष्मता से पठन करें तो पाठ एवं अर्थ - दोनों शुद्ध हो जाएंगे । गा. १५१६ में जो वाक्य है - ‘पच्चंतुस्सारणम्मि वोच्छित्ती', इसी में समाधान निहित है । ‘पच्चंत' यानी अन्तिम उत्सारकल्पिक शिष्य, उसको ‘उत्सार' कराने से 'सूत्र' का विच्छेद (वोच्छित्ती) हो जाएगा - ऐसा यहाँ तात्पर्य है। यहाँ कोई ऐसा तर्क करे कि यदि चूणि बृहद्भाष्य के बाद की होती तो चूर्णिकार के सामने बृहद्भाष्य अवश्य होता, और तो वे भी ऐसा ही लिखते । परन्तु उनके सामने वह नहि होगा, क्योंकि वह बाद में रचा गया होगा; तो वह तर्क अनुचित है। चूणि से पूर्व में बृहद्भाष्य की रचना हो ही गई हो, लेकिन चूणिकार के सामने वह उपस्थित न हो, ऐसा भी हो सकता है। और तो और, मगर वृत्तिकार के सामने तो बृहद्भाष्य था । तो भी उन्होंने इस पाठ को नजरअंदाज कर चूणिकार-स्वीकृत पाठ को ही क्यों अपनाया ? । 'अव्वोच्छित्ती' ही क्यों रखा ? । पच्चंत का 'प्रत्यन्त-ग्राम' अर्थ ही क्यों किया? । तात्पर्य क जैस यातकार के सामने बृहद्भाष्य के होने पर भी उन्होंने उसका अनुसरण नहि किम से ही चूर्णिकार ने भी बृहद्भाष्य की बात न स्वीकार की हो ऐसा मा संभावत है। अतः ऐसी बात को लेकर चूणि की पूर्वता व बृहद्भाष्य की परवतिता गिद्ध करना उचित नहीं। ६) कितनीक गाथाएँ लघुभाष्य में थी, और अभी भी हैं, परन्तु बृहद्भाष्यकार को वे अनावश्यक लगने पर उन्होंने उन गाथाओं को निकाल दिया हैं, या नहि लिया हैं । उदा. लघुभाष्य गा. १२८ (वृत्ति गा. ११४) 'मिच्छत्ता संकंती०' यह गाथा । इस गाथा का अर्थ अन्य गाथाओं में कह दिया गया है, अतः उसकी ग्रन्थ में अनिवार्यता नहीं है, तो भी लघुभाष्य में उसे स्थान मिला है, और चूर्णि-वृत्तिकार ने भी उसे मान्य की है। बृहद्भाष्य में ऐसा नहीं । वहाँ यह गाथा टाल दी गई है। ७) लघुभाष्य में गाथाओं के क्रम में कहीं कहीं उत्क्रम भी मालूम पडता है। जैसे कि गा. १९३/१९४ । यहाँ वास्तव में १९४ वाली गाथा पहली और
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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