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________________ सप्टेम्बर - २०१८ १८३ ११५३ - ११९८ । ३. 'मंगल' के अधिकार में 'लोणुण्हपदीवमादिव्व' (लघुभाष्य गा. २३) में तीन दृष्टान्त की घटना चूर्णि एवं वृत्ति में जिस तरीके से की गई है, उसकी तुलना में बृहद्भाष्य (गा. १४६ - ४८) में, वह अधिक प्रतीतिकर व तर्कसंगत तरीके से की गई है। ४. गा. १९० 'अणु बादरे य उंडिय०' में उल्लिखित दृष्टान्तों की घटना चूर्णि और वृत्ति में हुई जरूर है, लेकिन उन दृष्टान्तों का विशद व व्यवस्थित निरूपण तो बृहद्भाष्य (गा. ५०२ से) में ही मिल रहा है। उसमें भी 'मंखसुत' के दृष्टान्त की अत्यन्त समुचित घटना (गा. ५३२ - ३३) यहाँ है वैसी चूर्णि-वृत्ति में नहि है। ५. कभी तो एक ही दृष्टान्त को विभिन्न रीति से यहाँ समझाया गया है (गा. ११४१ - ४३)। २) कभी ऐसा भी हुआ है कि लघुभाष्य की गाथा का पाठ अधूरा या अपर्याप्त हो, और उसका सही पाठ बृहद्भाष्य देता हो । जैसे कि - १. लघुभाष्य गा. ३३६ 'सेल-घण-कुडग-चालिणि' में 'भोम्म' और 'कढिण' ये दो दृष्टान्त छूट गये हैं। जब कि गा. ३४० में 'भोम्म' की एवं ३४७ में 'कढिण' की बात तो आती ही है। बृहद्भाष्य में ये दोनों दृष्टान्त उक्त गाथा में ही समाविष्ट देखे जाते हैं (गा. ८४९) । २. 'हरिते बीएस तहा०' (लघुभाष्य गा. ५०१) के पाठ से बृहद्भाष्यगत इसी गाथा का (गा. ११०६) पाठ जरा जुदा है। परन्तु यहा लघुभाष्य के चूर्णि एवं वृत्ति के स्वीकृत पाठ में १-१ चतुर्भङ्गी छूट गई है, जब कि बृहद्भाष्यवाले पाठ में सभी चतुर्भङ्गिया समा गई हैं। ३. लघुभाष्य गा. ५०५ में 'वित्तसचलणे य आयाए' पाठ है, और बृहद्भाष्य में यहाँ 'वित्तसणे संजमाताए' पाठ है। जाहिर है कि लघुभाष्य के चूर्णि और वृत्ति द्वारा स्वीकृत पाठ में संयम की विराधना की बात रह गई है, जो बृहद्भाष्यवाले पाठ में नहि छूटती है। ऐसे तो कई उदाहरण या स्थान हैं जहाँ लघुभाष्य के मुद्रित या चूर्णि
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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