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________________ सप्टेम्बर - २०१८ १८१ भाष्यकार के अभिप्राय को भी चूर्णि ही खोलती है । जैसे कि ' पढमासति वाघाए०'१०० (गा. ४६४) में भाष्यकार ने तो 'पढमासति वाघाए' कहकर बात पूरी कर दी है। उसका तात्पर्य कहाँ तक पहुंचता है यह तो जब चूर्णि पढते हैं तब ही समझ में आता है। यहा 'जतणाए' पद है, और उसका सम्बन्ध गा. ४१९ गत 'जयणा'१०१ पद के साथ जोडने का है, इसका पता तो, चूर्णिगत 'एत्थ जयण त्ति वाक्यं पडितं'१०२ इस वाक्य से ही चलता है। ___भाष्य में मुनिजीवन की अनेकविध सामाचारी का निर्देश दिया गया है। उन सामाचारी की बातें समझने के लिए चूर्णि की सहायता अनिवार्य है । यदि केवल भाष्य के शब्दों से सामाचारी को समझने का प्रयत्न किया जाय, तो वह विफल ही रहेगा, इसमें कोई शंका नहीं। यह चूर्णि भी यहाँ पीठिकांश की ही सम्पादित की गई है। यह चूर्णिग्रन्थ, जैसा कि इस लेख के प्रारम्भ में कहा है वैसे, पुनः सम्पादित हुआ है, और पुनः प्रकाशित हो रहा है। बृहद्भाष्य चूर्णि के बाद हम बृहद्भाष्य के बारे में कुछ लिखना चाहेंगे । सर्वप्रथम एक बात स्पष्ट होनी आवश्यक है कि 'कल्प-बृहद्भाष्य' स्वतंत्र ग्रन्थ नहीं, अपि तु कल्प-लघुभाष्य का विवरण-ग्रन्थ है। जैसे लघुभाष्य पर चूर्णि एवं वृत्ति लिखी गई हैं, उसी प्रकार उस पर यह बृहद्भाष्य भी लिखा गया है। बृहद्भाष्य की विवरण-पद्धति जरा विलक्षण है । उसका परिचय इस प्रकार है - बृहद्भाष्यकार को जहाँ आवश्यक लगा वहाँ - १. लघुभाष्य की गाथा के उपर एक या एकाधिक गाथात्मक विवरण लिखा है। २. जहाँ जरूरी नहि लगा वहाँ लघुभाष्य की गाथा पर कुछ नहि लिखा। ३. कई स्थान पर लघुभाष्य की गाथा के अंशों को पकडकर एक गाथा पर नई ४-६ गाथाएँ बनाई हैं। देखते ही खयाल आ जाता है कि ये गाथाए अमुक गाथा के विवरण में बनी हैं। ऐसे स्थान पर लघुभाष्यवाली मूल गाथा को वे ग्रहण नहि करते, सिर्फ उसके अंशों को लेकर बनी नई गाथाएँ ही रखते हैं।
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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