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________________ १७२ अनुसन्धान-७५(१) उपलब्ध चूर्णि पुरातन है, शायद कल्पभाष्यकार संघदासगणि से भी पहले की है । भाष्यकार ने अपने पञ्चकल्पभाष्य में एक गाथा लिखी है, उसमें 'आवस्सए' ऐसा शब्द है । उस गाथा में जिस उदाहरण का निर्देश है उसे 'आवश्यक' में देख लेने की सूचना वहाँ दी गई है। अब उक्त उदाहरण आवश्यकनियुक्ति में या भाष्य में तो है नहीं; हाँ, चूर्णि में अवश्य मिलता है ७९ | अत: 'आवस्सए' पद से 'आवश्यकचूर्णि' का ही अतिदेश होता है ऐसा मानना होगा। और तो यह चूणि पञ्चकल्प-भाष्यकार के समक्ष थी ऐसा मानना ही होगा। और अगर यह कल्पना यथार्थ है, तो स्पष्ट है कि इस चूर्णिकार के सामने जिनभद्रगणि कृत महाभाष्य नहीं ही होगा, और तो उसमें महाभाष्य का कोई उल्लेख या सन्दर्भ कैसे मिलेगा?, महाभाष्य तो बहुत परवर्ती है। और अब यह भी कहना आसान बनेगा कि इस पुरातन चूर्णि में जिन मतों का उल्लेख है, उन मतों पर, समय के बहेते, विमर्श एवं ऊहापोह बढते गये होगे, और अन्ततोगत्वा महाभाष्यकार ने उन मतों का खण्डन किया होगा। इसके बाद भी, यदि यह चूणि जिनदासगणि की नहि है, तो उनका नाम इस चूर्णि के साथ कैसे जुड गया? और व्यवहार व पञ्चकल्प आदि की चूर्णि में वे आवश्यक(चूर्णि) का हवाला देते हैं उसका हल क्या होगा?, ये प्रश्न तो खडे ही हैं। इसका एक ही खुलासा हो सकता है : उन्होंने भी आवश्यक पर चूर्णि (या विशेषचूर्णि) बनाई होगी, मगर किसी भी कारण से वह आज उपलब्ध नहि है। जैसे अनुयोगद्वार, दशवैकालिक, जीतकल्प इत्यादि ग्रन्थों पर दो दो चूर्णिया हैं ही। बृहत्कल्प पर भी चूर्णि एवं विशेषचूर्णि दो चूर्णि हैं ही; निशीथ पर जिनदासगणि ने 'विशेषचूर्णि' ही लिखी है, उसका मतलब कि उसकी भी अन्य चूर्णि होनी चाहिए । ठीक इसी प्रकार, आवश्यकसूत्र की एक प्राचीन चूर्णि के उपरांत, इन्होंने नयी चूणि या तो विशेषचूणि बनाई हो ऐसा हम मान सकते हैं; और तो ही 'पुव्वं आवस्सए भणिय' जैसे उल्लेख सार्थक हो सकते हैं। इस तरह नन्दी, अनुयोगद्वार एवं निशीथ के उपरांत, उपर उल्लिखित प्रमाणों के आधीन, पंचकल्प, कल्प-व्यवहार, ओघनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति या तो दशवैकालिक, आवश्यक - इन सब की चूर्णियों के प्रणेता भी जिनदासगणि
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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