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________________ सप्टेम्बर - २०१८ १४३ 'ताभ्यो देवाः सङ्ख्येयगुणाः, वानमन्तरज्योतिष्काणामपि जलचरतिर्यग्योनिकीभ्यः सख्येयगुणतया महादण्डके पठितत्वात्' -- जीवाजीवाभिगमसूत्र के उपर्युक्त सूत्र पर मलयगिरि टीका, पत्र ४२८ब ११. “तिरिक्खजोणित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, देवपुरिसा संखेज्जगुणा' - जीवाजीवाभिगमसूत्र, द्वितीय प्रतिपत्ति - द्रव्यानुयोग, भाग ३, पृष्ठ १४४७ (गुजराती संस्करण); जैन विश्व भारती, लाडनूं, सूत्र २/१४५ ___पृष्ठ २५३; गुरुप्राण फाउण्डेशन ट्रस्ट, पृष्ठ १६७, सूत्र ११९ १२. “तिरिक्खजोणित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ" ___ - जीवाजीवाभिगमसूत्र, द्वितीय प्रतिपत्ति- अभिधान राजेन्द्र कोष, भाग १ पृष्ठ ६६३; अमोलक ऋषिजी, पत्र ८४; राय धनपतसिंह बहादुर द्वारा प्रकाशित १३. देखे टिप्पण क्रमांक-५ १४. देखिये टिप्पण क्रमांक-४ १५. देखिये टिप्पण क्रमांक-७ १६. "एगजीवस्स णं भंते! एगभवग्गहणेणं केवइया जीवा पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति? गोयमा! जहन्नेणं इक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवा णं पुत्तत्ताए. हव्वमागच्छंति।" - वियाहपण्णत्तिसुत्तं, शतक २, उद्देशक ५, सूत्र ८(१) (महावीर जैन विद्यालय) १७. (४१) जोइसिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ (४२) खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णपुंसया संखेज्जगुणा (४३) थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णपुंसया संखेज्जगुणा (४४) जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णपुंसया संखेज्जगुणा - प्रज्ञापनासूत्र, पद-३, सूत्र ३३४, सम्पादक - मुनि श्रीपुण्यविजयजी १८. (३७) जलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ (३८) वाणमंतरा देवा संखेज्जगुणा (३९) वाणमंतरीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ (४०) जोइसिया देवा संखेज्जगुणा (४१) जोइसिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ (४२) खहयरपंचेदियतिरिक्खजोणिया णपुंसया संखेज्जगुणा (४३) थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णपुंसया संखेज्जगुणा (४४) जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णपुंसया संखेज्जगुणा (४५) चरिंदिया पज्जत्तया संखेज्जगुणा - प्रज्ञापनासूत्र, (पद ३), सूत्र ३३४, सम्पादक - मुनिश्री पुण्यविजयजी
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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