________________
अनेकार्थसंज्ञक बे स्तोत्रो
- सं. गणि सुयशचन्द्रविजय
मुनि सुजसचन्द्रविजय
अनेकार्थसंज्ञक रचनाओगें वर्गीकरण अन्य रीते ३ प्रकारे पण विचारायुं छे । (१) अनेकार्थी पद्यवाळी रचना (२) अनेकार्थी चरणवाळी रचना (३) अनेकार्थी शब्दवाळी रचना
प्रस्तुत बन्ने कृतिओनो समावेश उपरोक्त त्रीजा प्रकारवाळी रचनाओमां करी शकाय । अहीं प्रथम काव्यमां कविए 'सारंग' तथा 'हरि' शब्दने तेम ज बीजा काव्यमां 'गो' शब्दने विविध अर्थोमां प्रयोजी काव्यनी रचना करी छ ।
आम तो उपरोक्त त्रणे शब्दने विभिन्न अर्थरूपे समावती स्वतन्त्र रचनाओ तो ५-७ मळे छ पण अहीं प्रकाशित करायेली रचनाओमा प्रथम रचना चतुःषष्टिकर्णिकोपेत कमलबन्धबद्ध चित्रालङ्कारनी दृष्टिथी, तेम ज काव्यना प्रत्येक पद्यना प्रत्येक चरणमां आदि-अन्त रूपे प्रयोजायेल २ विभिन्न शब्दोना अनेकार्थी प्रयोगने कारणे वैशिष्ट्यवाळी होइ सम्पादनार्थे पसंद कराई छे । ज्यारे बीजी रचना 'गो' शब्दना मळता अन्य अनेकार्थी काव्यो करता पद्यबाहुल्यथी जिनेश्वर प्रभुनी स्तवनानी दृष्टिथी महत्त्वपूर्ण होवाथी प्रकाशित कराई छ । कृतिकार
श्रीहीरविजयसूरीश्वरनी परम्पराना कोई विद्वान कविनो प्रथम रचना छ । कविए काव्यान्ते प्रयोजेल ‘पर्वतसेवकेन' शब्द कृति-रचयिताना नाम अंगे भ्रम ऊभो करे छे । तेथी कवि कां तो पर्वत छे अथवा तेमना कोई सेवक (शिष्य) होय तेम विचारी शकाय । ज्यारे बीजी रचना लोंकागच्छीय कवि तेजसिंहनी रचना छ। कविए उद्यमपंचविंशिका, गणितपंचविंशिका जेवी अन्य नानी मोटी १५-२० कृतिओ रची छे । जो के हजू तेमांनी घणी अप्रकाशित छे । आ वृतिओनो अभ्यास थाय तो कवि तेजसिंहना जीवनचरित्र पर विशेष प्रकाश पाथरी शकाय ।
प्रान्ते बन्ने कृतिओनी हस्तप्रतनी Xerox आपवः बदल अनुकमे श्री नाकोड़ा पार्श्व. जैन ट्रस्ट (नाकोडा) ना तेम ज श्री नामा-विज्ञान-कस्तूरसूरि ज्ञानभण्डारना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार ।