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अनुसन्धान-७४
ओछी जातिं जे छइ अबला, तस परिवार धरिइ ते सबला, जो० २ विणि कारणि ढांकी जिणि काया, इसी नारी ते नर नीपाया, जो० ३ भरतमाहि दीसई छई केता, नाम सामान्य धरइं सवि एता, जो० ४ एथी साधु सकल ते साचा, ए विण विकल कहावई काचा, जो० ५ वदनि पडी छइ जेहनी युवती, प्रगट प्रेम ते शुं अनुभवती, जो० ६ परमेश्वर- अछइ दीधउ, भाग्ययोग छइ तेहे लीधउ, जो० ७ लिखमीकल्लोल इम पंडित भाषइ, शिवसुख न लहइ को एक पाखइ. जो० ८
[रजोहरण]
लला मेरे, पंडित देहु विचार, लला मेरे, अक्षर त्रिणि मझार, लला मेरे, पूर्छ तुम्ह इक बार, लला मेरे, मुझ मनि हरख अपार. ल० प्रथम अक्षर विनु लोइ, ल० तरुवर वनमांहि होइ; ल० सामल वरणई सोइ, ल० ऊंचउं अवर न कोइ; ल० दुतीय अक्षर विनु जानि, ल० उत्तम व्रत गुनखानि; ल० सबही सुखकउ ठान, ल० अवर न कोई समान. ल० तृतीय अक्षर विनु देह, ल० सबही धूणइ तेह; ल० दीसइ नयनि न जेह, ल० नाम कहउ कुण एह. ल० तीनि ति हुआ जिनराय, ल० ध्यावउ मनचइ भाय; ल० चामीकर जसु काय, ल० शिवरमणी सुखदाय; ल० प्रणमइ सुरनर पाइ, ल० अंगई हरख न माय, ल० सुररमणी गुन गाइ, ल० नृत्य करत मनराइ, ल० मोहन शशधरवयनी, ल० नीलकमलदलनयनी; ल० मदनमहाभडलयनी, ल० जानत हय सब सयनी. ल० तनि सजि देवदुकूल, ल० बोलती पिक अनुकूल; ल० तेह कटिमेखल रतिमूल, ल० घमकती घूघरी अमूल.