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________________ ७० अनुसन्धान-७४ (१७) राय आगलि कहउ रंगि बहु कुण रमइ, (१८) पुरुषनइ चडत योवनि कहउ कुण गमइ; (१९) निखर द्रव्य देखि मनमाहि मानइ किस्यउ, (२०) वहत व्यापारि कहि वृद्ध कुण मनि वस्यउ. ५ (२१) शब्द सुणी केसरी केहनउ ऊछलइ, (२२) माण वली रायनउ ते कहउ कुण मलइ; (२३) नेमि जिण छोडी सर्व जीव करुणा करी, (२४) रुद्र घरि घरणी कहउ केणि नामिइं सरी. - ६ पंक्ति चुवीस अक्षर त्रिहुं त्रिहुं तणी, अंति दोइ छंडियइ प्रथम संग्रह सुणी, आगमि गुरुमुखि जासु महिमा सुणी, नाम हुइ जेहनउ भगति वांदउं घणी. - ७ इम दुक्खवारक सुक्खकारक सयल जीवां हितकरू तेज मूरति कर्म चूरति पापपंक निराकर; बाइसमांथी जिन त्रेवीसम पुरखादाणी गुणभर्यउ, वांदइ जिणवर कहइ हर्षचन्द्र ते भवसायर तर्यउ. - ८ (१. लक्षण २. टकार ३. करिणी ४. सायर ५. साकर ६. हरिण ७. नयण ८. इतर ९. पावक १०. डमरू १. इक्षाग १२. श्रीपति १३. सायर १४. मदन १५. लपनी १६. उत्तम १७. पायक १८. रमणी १९. सखर २०. नायक २१. थणिय २२. वामन २३. दयाल २४. उमया । आ शब्दोना प्रथमाक्षरोथी वाक्य बने छे : "लटकसा साहनइ पाडइ श्री सामलउ पारसनाथ वांदउ.'') (३) परमप्रवीण अणजीत निरमल बिहु पखे; सयल संसार जस वास सारै; पुरुष इक मौज महिराण हरपालगर, वाट घट घाट दुख दाह वार. १
SR No.520575
Book TitleAnusandhan 2018 04 SrNo 74
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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