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जान्युआरी - २०१८
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प्रणमन धातु भुजंग कुण जे भूभारि भग्गइ नही, कुण खमइ घाय टंकण तणउ भणउ भाई भली परिं पही. (राजा, जाली, राज्य, मही, चंद्र, द्रम्म, सीर, ताल, प्रातः, णम्, शेष,
दल(?). एना आद्याक्षरो वडे बने छ : राजा रामचंद्रसीताप्राणशेद (?)) १२. या अंगज गिरि सुता पितरि तर वस्तु निरंतर,
आपकु नाभि बहुत्त तरुणीगुण के किमनुत्तर; कुण पद्धरधन करा दीप को जगति झलामल, मघवमानिनी सुहड वेढि किं वंछइ महाबल, सगउ नहीं कुणइ अम सुणि तत्त्वराशि वद विबुधवर, पढम वर्ण लेयो सकल सो पृथिवीपत्ति शर्मकर. (साज, हिम, जल, लाज, लट, दीह, चिद, रंभा, जय, यम, तुला -
एना आद्याक्षरथी बने छे : साहि जलालदी चिरं जयतु) १३. विहगप्रिय कहु कवण कुनृप किं मग्गइ बहुतर,
त्रपा पुरुष पर्याय आदि अंत अक्षर सुंदर; युगल त्रिगड मित कोटि सुरभि पुच्छि तुझ पूर्छ, सिंधुसलिल कीदृश भणुं हुं वयण न भुंछु, दानी दिनि दिनि वावरइ वरइ वडाइ विविध विधि, विरहिणी वल्लभ रंगभर सकल सुखाकर वदति विधि. (सर, कर, लर, सुर, खार, कर)
(एना आद्याक्षरथी बने छे : सकल सुखाकर) १४. सरस नारी सुपियार सयल संसार गिरट्ठी,
नांउ समाता तीय जतीकू मूल न मिठी; सोलह वरस पपत्थि(?) पुरुष संगति लइ, घडी कटिइं पख वधइ, तितीस वरस पाछिइ माल्हइ; तिस नारीथी नर सोहइ नारी ऊपनी एध जुग,
कवीयण कहइ तुम्हे सांभलो, कहो अरथ छ मास लग्ग. [दाढी ?] १५. तीन कुट्टका एक शरीर, अंन न खाइ न पीइ नीर; जिणि मुख लोही जीव न मंस,
नही पखेरू नही पण हंस;