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________________ अनुसन्धान-७४ २३२ ए श्रीगुरुनी जोडि, श्रीभगवंत सदा सही ए, होज्यो पुण्य प्रमाण, तपगछ गुरुगुण गहगही ए २३० ए गुरुना गुण जेह, एक जीभई कुण वरणवइ ए, तास जनम सही धन्य, जे ए गुरुनई संस्तवइ ए २३१ सोल पंच्यासीइ सार, आषाढ शुदि पूनिम दिनई ए, रूड़ तिहां रविवार, रास रच्यु मन उल्हटइं ए, रास रचिउ मंगलपुरिइं ए ॥ ढाल - अढारमी ॥ १८ राग - धन्यासी ।। हींचिरे हींचिरे हिअयहीं डोलडइ ए देशी ॥ हीरजी हीरलो तास पटि अति भलो, श्रीविजयसेनसूरीश राजइ, श्रीविजयदेवसूरि तास पटि निरमलो, भाग्य सौभाग्य वैराग्य छाजइ २३३ हीरजी... थापिओ जेणि निज पाटि विजयसिंघजी, सदा उदयवंत गुरु एह गायो, कल्याणकुशल गुरु शिष्य सुख रंगरस, कहइ दयाकुशल सही मइं ज पायो २३४ हीरजी... ॥ इति श्रीविजयसिंघसूरीश्वर पदमहोत्सव रासः संपूर्णः ॥छ।। । संवत् १६८६ पौष शुदि १० ।। ग्रंथाग्रं-३२१ ॥श्री।। सूरकुशलगणि सत्का प्रतिरियं ।।छ।।
SR No.520575
Book TitleAnusandhan 2018 04 SrNo 74
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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