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________________ ५० करावइ बहु पुण्यकरणी, निज मातनई मनरंगि रे, फुलांना गुण केम भूलई, जेह वसीआ अंगि रे ॥ दूहा ॥ राग - रामगिरि ॥ महिमा जिम पंचमेरुमा, मध्य मेरुनो जेम, पंच पुत्रमां अतिघणो, कर्मचंद महिमा तेम भाग्य सौभाग्यइं आगलो, परतखि मोहणवेलि, देखत हरखइ नयन-कज, सोभागी रंगरेलि अनुसन्धान-७४ ९२ करु सुअणा... ९३ ९४ ॥ ढाल - सातमी ॥ ७ राग - रामगिरि ॥ निसुणो मगधदेस मज्झारि ए देशी ॥ कर्मचंद ते महिमानिलो, सुरतरु परि सोहइ अतिभलो, बीसइ लख्यण जस अंगि, उपइ ऊरध रेखा रंगि अणी आली नाशा उपती, अधर उपइ परवाली रंग, अरध चंद्र परि दीपइ भाल, नयन - कमल ते अतिहिं विशाल, हीरा परि दंतह - पंकती कंबू परि ग्रीवा जस चंग, हृदय - कमल अति पहूलो भलो, केसरी परि जस कटि-लंकलो ९७ गजगति मति अति सोहइ सदा, हरखावइ सहू जन-मन मुदा, संवत सोल चिउंआला मास, जास जनम कहुं अतिहिं उल्हास बीज फागुणनी नई रविवार, नक्षत्र उत्तरभद्रह सार कुंभ संक्रांति अनइ शुभयोग, पूरण करकलगननो भोग माता नायकदे प्रसवइ नंद, सकल लोकनई अति आणंद, उच्चलगनि सुरगुरु दीपतो, दुष्टग्रहनां बल जीपो महिमा जास सकइ कुण कही, राजयोग ए साचउ सही, पंच नवमहं सुरगुरुनी दृष्टि, संतति धर्म तणी करइ पुष्टि राहु कन्यानुं निज घरि कह्यु, एह ज ग्रह उत्तम अति लघु, सहजभवननां सुंदर सहू, राहु कन्यानो फल दिइ बहू धर्मभवनि चंद्र-मंगल योग, सुख-धर्मनो करइ संयोग, कर्कलगननो स्वामी चंद्र, धर्मभवनि तेहथी आणंद कर्मभवनिथी शनि दुख हरइ, रवि आठमानो रख्या करई, धनभवनि बुध शुक्रह द्रष्टि, धन-सुख-संपतिनी करइ पुष्टि ९६ ९८ ९९ १०० १०१ १०२ १०३ १०४
SR No.520575
Book TitleAnusandhan 2018 04 SrNo 74
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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