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________________ जान्युआरी - २०१८ ४७ ॥ ढाल - पांचमी ॥ ५ राग - मल्हार ॥ चतुर चउमासूं पडिकमी ए देशी ॥ मोहनगारुं मेडतुं दीठइ अतिहि उल्हास रे, परतखि स्वर्ग समोवडिं, जांणू सहीअ कैलास रे ५५ मोहनगारुं... महाचक्रवत्ति जे हूउ, मांधाता माहंत रे, तेणइ ए नयर वसाविउं, जिहां सरलतर संत रे ५६ मोहनगारुं... त्रिपति न पांमइ नयणडां, जोतां नगरनूं नूर रे, वाडीअ वावि सरोवरई, जिहां सजल जलपूर रे ५७ मोहनगारु... प्रवर प्रासाद सोहामणा, चउपद चहुटइ रंग रे, मंदिर मोटां सोहांमणां, चतुर चित्त हरइ चंग रे ५८ मोहनगारूं... धनिइं करी धनद समोवडइ, व्यवहारी गजघट्ट रे, दान पुण्यइ करी आगला, पुण्यवंत गहगट्ट रे ५९ मोहनगारु... रूप रूडां नर नारिनां, उपई अदभूत वेष रे, सुललित वाणी सोहामणी, नहीं राग नइ द्वेष रे ६० मोहनगारूं... केइ बेसइ वर पालखी, हय गय रथ कोडि रे, जोता युगतिस्यूं तेहनी, कुण मांडीइ जोडि रे, नहीं खंपण खोडि रे ___६१ मोहनगारु... दंड कलस धज लहलहइ, सोवन-शिखरनइ शृंगि रे, घंटानाद सोहामणां, सुणतां रतिरंग रे ६२ मोहनगारुं... अबल उपाशिरइ पेखीइं, मुनीजनतणां वृंद रे, अमृत वाणि सुणावतां, टालई पापना फंद रे, दीठइ अतिहिं आणंद रे ६३ मोहनगारुं... उपगारी जन तिहां वसइ, करइ पात्रना पोष रे, दांन दीइ मन मोकलई, नहीं कोयस्यूं रोष रे ६४ मोहनगारूं... पढइ पढावइ शास्त्रना, जे जाणइ मर्म रे, पुरुषारथ त्रिणि साचवइ, अवसरि धर्म कर्म रे ६५ मोहनगारूं... अरिहंत भगति जिहां घणी, करुणापर लोक रे, शत्रूकार सदा दीइं, स्वप्ने नही शोक रे ६६ मोहनगारुं... पासइ तीरथ फलवधी, कोस त्रणि तिहां तेअ(ह) रे, जाई तिहां जिन पूजवा, नर नारि बहू नेह रे ६७ मोहनगारुं...
SR No.520575
Book TitleAnusandhan 2018 04 SrNo 74
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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