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________________ ३४ अनुसन्धान-७४ धिन धिन जिनशासन धिन ते जिन चउवीस, तिम ते धिन जगमां ज्ञान-निधी(धा)न मुनीस । समरु हु तसु गुण-रासि नमुं निसदीस, गुणठाणुं पाम्या चउदमुं विण रीस ॥२५॥ विणुरी सिव परणी कर्म-हेतु सब छेदी, कह किम नारि किसी गति होसि ते च्छइ सर्व अवेदी । तेसु घरि रीति गति सवि जाणइ विजयदान सुयभेदी, सकलचंद नेतु सब जाणइ जउ हुइ केवलवेदी ॥२६।। ॥ इति गुणस्थानक-कर्महेतु-त्रिभंगीस्तवनं समाप्तम् ।। भक्तकवि-श्रीऋषभदास-कृत जिनपूजाफल-स्तवन भक्तकवि श्रीऋषभदास. मध्यकालीन जैन भक्तिकाव्य साहित्य- अक महामूलुं तेमज आदरपात्र नाम. एमणे रचेली अेक नानकडी कृति अप्रगट जणायाथी अत्रे प्रस्तुत करी छे. अरिहंत प्रभुनी पूजानुं माहात्म्य वर्णवq अ आ कृतिनो उद्देश छे. जे माटे कवि 'आ करणी, आटलुं फळ' एवी आंकडाशास्त्रीय गणतरीनो सहारो लीधो छे. साची श्रद्धापूर्वक थतुं नानुं पण सत्कार्य घणुं मोटुं फळ आपे छे ओवा सृष्टिना सनातन नियमना परिप्रेक्ष्यमां आ वातने जोई - समजी शकाय. स्तवननी १ पानानी प्रत सं. १७०९मां बुरहानपुरमा पण्डित अनन्तविजयना शिष्य रत्नविजय गणि द्वारा लखायेली छे. पण्डित श्री ५ श्री अनन्तविजयगणिगुरुभ्यो नमः ।। ॥ ढाल चोपइ ॥ सरसती सामिणि समरी माय, जिनपूजा-फल विवरी गाय । मन चिंतइ जीव देहरइ जाय, । चोथतणुं फळ तेहनइ थाय ॥१॥
SR No.520575
Book TitleAnusandhan 2018 04 SrNo 74
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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