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अनुसन्धान-७४
मिथ्या पण त्रस आठ कसाया, मीस ऊदारिक कम्मणया,
हारक ए अट्ठारो । वीस दिगंबर तुअ(?) दुग विक्किअ, पंचम गुणि सइंतीस हेतु कीय,
एगुणच्यालशि कारो ॥११॥
॥ भाषा ॥ पनर च्छेद करइ गुण पंचमिइं, अविरतीय इग्यार तिहां वमइ । तित्तीअ च्यार कषाय तिहां छुणइ, पनर हेतु इणीपरि ए हणइ ॥१२।। नोकषाय नव चउ संजलना, आठ जोग चउ चउ मन-वचना,
हारक वेक्किय दो दो । ऊदारिक एक हेतु छवीसो, देगंबर-मति ते चउवीसो,
छठुइ हार-दु छेदो ॥१३॥
॥ भाषा ॥ एगतीस तित्तीस दिगंबरइ, हेतु दोइ विना इहां पंत रहइ । बार अव्रति बार कसाया, मिच्छ पंच तणु-जोग दु लाया ।।१४।। आठ योग तिम तेर कसाया, हार ऊदारिक विक्किय गाया,
ए सत्तमि चउवीसो । बंध-हेतु तेत्रीस विना इम, उगणत्रीस कह्या पाच्छिइ यम,
___जोग च्यारि मुणि सीसो ॥१५।।
॥ भाषा ॥ हार-मिश्र ऊदारिक-मीसं, कम्मणं च विऊब्विअ-मीसं । बंध-हेतु चउवीस सितंबरा, छेद नत्थि दुवीस दिगंबरा ॥१६॥ हेतु दुवीस अपूरव गुणि मुणि, बंध-हेतु पिइं तीस विना मुणि,
हारक विक्किय दोइ । एते तीसह उपरि वाधइ, अट्ठमि हास-छ-छेद ज लाधइ,
हेतु संभाली जोइ ॥१७॥ चउ कसाय संजलण ति वेदो, आठ योग उदारिक खेदो,
नवम गुणिइ ए सोलो ।