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________________ २०१८ चंपक वेउल केवडी, कमली जूही जाइ । फूलपगर ढीचण समु, अमर करइ प्रभुपाई ॥ स्वामी अमर करइ प्रभुपाइ, तीणइ दीनइ ते बहु सुख थाइ ॥ १२॥ पूजा बारमी ॥ २३ (१३) तंडुल सालितणां सही, घणां अखंड आषे आणउ रे । अट्ट मंगल नित पूरीइ, जिन आगलि युगतिर जाउ रे || १३|| केवली० ॥ रायभोग रुलीआमणां, अथवा सुगंध शालि । अखंड सुख ते पामिसइ, जे पूरइ मंगल पालि ॥ स्वामी पूरइ मंगल पालि, इम कर्मतणां मल टालि रे || १३|| पूजा तेरमी || (१४) अगर अपूरव मेलीइ, माहि कस्तूरी संयोग रे । रयण धूपधाणइ करी, ऊखेवइसु अतिघण भोग रे || १४ || केव० ॥ भोगतणी घडि माडीइ, अनइ समोसरणि सुगंध । अमर करइ अधिक विनय, आणी अविहड रंग रे || स्वामी आणी अविहड रंग, प्रभु दीसइ ते निरमल अंग रे ||१४|| पूजा चउदमी ॥ (१५) नादतणी पूजा करउं, वर वीणा झालर ताल रे । मादल वंश विशेखीइ, घणु वाजइ घंटा लाल रे || १५ || केव० ॥ पडह भेर भुंगल भलां, अनइ वाजइ वर ते नीसाण । जाणे दुंदुह देवनी, निरतुं आणि मान ॥ स्वामी निरतुं आणइ मान, जिनपूजा एह प्रमाण रे || १५ || पूजा पनरमी ॥ (१६) अरथविशेषइं ऊजलउ, गुणगुरुआनु अवदात रे । निरमल कंठइ गाईइ, जे त्रिभुवन माहि विख्यात रे || १६ || केव० ॥ गीत छंद पद बंध बहु, धूआ माठा चंग | जगन्नाथगुण गायंता, आविउ अविहड रंग ॥ स्वामी आविउ अविहड रंग, जीणइ छूटइ भवनु संग || १६ || पूजा सोलमी ॥
SR No.520575
Book TitleAnusandhan 2018 04 SrNo 74
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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