________________
६४
मोहराय सिर पाडै दंडो त्रिभुवन जास प्रताप अखंडो भवियण मन आणंदो...
भव भय-भीड भली परि चूरै मनवंछित सुखसंपति पूरै प्रभु कर मोरी सारो
वरुण ज कहीयै पच्छिम स्वामी तिण आराध्यो तुं सिर नामी वच्छर लक्ष ईग्यारो... २
असीय सहस संवछर भुयतल सेव्यो हियडै निरमल
वासग-विसहर स्वामी
पछै पूज्यो तूं परमेसर
सात मास नव दिवस निरंतर दसरथनंदण रामो....
३
ता काल प्रथम हरि ध्यायो द्वारिका नगरी पछै आयो पूज्यो देव मुरारो
द्वारिका दाह जलांतर रहियो सागरदत्त सेठ संग्रहीयो
कूं (कं) तीनगर मझारो... ४
नागार्जुन जोगी तिहा लीधो
सेढी तेहनो नवरस सीधो तुझ विण अवर न वीरो
उलट नदी वहै वरसालै
तास ऊंपर घण वेलू वालै गाय झरै तिहां खीरो...
५
अनुसन्धान- ७३