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अनुसन्धान-७३
केटलांक पदो
- सं. प्रा. अनिला दलाल
ला. द. विद्यामन्दिरमा ह.लि. ग्रन्थसंग्रहमां प्र.क्र. ८२२१९ पर त्रण पानांनी, सम्भवतः १९मा शतकमां लखायेली, एक प्रति छे. तेमां लखेलां पदो अत्रे सम्पादित करवापूर्वक आपवामां आव्यां छे.
प्रथम पद नेमिनाथ-सम्बन्धित छे. पांच कडीना आ लघु पदमां, तेना कर्ता शिवरतन साधुए, राजीमतीना हृदयनी, नेमि-विरहजन्य शोकाकुलतानुं भावुकतासभर वर्णन कर्यु छे.
बीजा क्रमे थंभण पार्श्वनाथ- स्तवन छे. थंभण प्रभुनी प्रतिमा, पुराणकालमां, विविध देवो अने इन्द्रोए तथा राजाओए पूजी छे तेनुं क्रमिक वर्णन कर्या पछी सिद्धयोगी नागार्जुन अने ते पछी अभयदेवसूरि तेमज थंभणपुर (थामणा) साथे तेनो ऐतिहासिक सम्बन्ध कविए निर्देश्यो छे.
त्रीजी कडीमां 'वासग' ते वासुकी नाग समजवानो छे. कर्ता, नाम स्पष्ट जोवामां नथी आवतुं. छेल्ली कडीमां आवतो 'अमरविशाल' शब्द कर्तापरक हशे ?
त्रीजुं स्तवन पार्श्वजिनना १० भवोनुं स्तवन छे. आमां नव भवोनी ज वात छे. पहेलो भव विश्वभूति विप्रना पुत्र मरुभूतिनो गणाय छे, अहीं तेनुं वर्णन 'भव पहलें अमरविभूत' एम आपीने 'मरुभूत' नाम संकेतायुं छे. आठमी कडीमां 'वरकाणे हो थांन पयठा' - ए पंक्ति वरकाणा तीर्थनो निर्देश करी जती जणाय छे. नवमी कडीमां 'सब धरती कागज करूं, कलम करुं बनराय
सप्त समुंदर की मसि करूं, पर प्रभुगुन लिख्यो न जाय'ए प्रख्यात पंक्तिनो भाव ठालव्यो छे. त्यां 'मिसह' एटले मषी-साही अर्थ करवानो छे. १०मी कडीमां 'दे अपूतां पूंतडा' - अपुत्रीआने पुत्र आपे - एवो भाव छे. आमां पण कर्ता, नाम जणातुं नथी.
चोथु पद अध्यात्म-पद छे. तेना प्रणेता प्रख्यात साधक साधुपुरुष 'ज्ञानसार' छे. पदनुं कथ्य ए छे के मृत्यु आव्युं छतां जीव हजु बुझतो नथी. वैरागी-वीतरागीनो देखाव करतां आवडी गयो एटले ते देखाव-दम्भना सहारे, स्थूल सघळु छोड्युं, पण हजी मननी माया नथी छूटी.