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सप्टेम्बर
२०१७
श्रीतिलकविजयजीकृत ११ गुर्जर रचनाओ
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- सं. मुनि धुरन्धरविजय
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[१८मा सैकाना तपगच्छपति विजयप्रभसूरिजीना राज्यमां, गच्छपति श्रीहीरविजयसूरि आनन्दविजय मेरुविजय उ. लावण्यविजयना शिष्य वाचक लखमी (लक्ष्मी) विजयजीना शिष्य श्रीतिलकविजयजीनी ११ गुजराती काव्यात्मक स्तवन-रचनाओ अत्रे प्रगट थाय छे. तेमणे १२ व्रतनी सज्झाय रच्यानी नोंध 'जैनगुर्जर कविओ (५) 'मां जोवा मळे छे.
आ बधी रचनाओ वर्षो पूर्वे मुनिराज श्री धुरन्धरविजयजीए हस्तप्रतिओमांथी ऊतारी राखी हती, ते तेमनी नोटनी नकलना आधारे अत्रे आपवामां आवी छे. कविए दीव, ऊना आदि क्षेत्रोमां विहार विशेष कर्यो हशे तेम ते ते गामना भगवानना गुणगान करतां स्तवनो जोतां लागे छे. कविने गच्छपति प्रत्ये अपार आदर - बहुमाननी लागणी हशे तेनो ख्याल गच्छपति विषे कविए रचेली रचनाओ जोतां आवी शके छे. आमां क्र. ८ तथा ९ रचनाओ हंसविजयजीना शिष्य तिलकविजयजीनी छे. तथा ७ अने ११मी रचनामां गुरुनाम वगर मात्र 'तिलक' एम कर्तानुं ज नाम जोवा मळे छे. ते आ बे पैकी कोण होय ते नक्की करवानुं मुश्केल लागे छे.
आ रचनाओ प्रकाशनार्थे आपवा बदल मुनिश्रीनो आभारी छु - शी.]
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श्रीनेमिजिन द्वादशमास
॥ राग
सारंग ॥
वाणी पदपंकज नमी, वली प्रणमी हो श्री गुरुना पाय कि, मन-वय-काया थिर करी, नेहइ थुणस्युं हो यादव कुलराय कि. ॥१॥ राजुल बोलइ पिउ सूणो ॥ अह्मे अबला सबला तुम्हो, प्रेमइ पुरो हो स्वामी महिला आस कि, योवनजल तटिनी तटि, कामक्रीडा हो कीजइ बारई मास कि ॥२॥ आसाढी घन गाजीओ, जल वरसई हो वलि वीज अपार कि, दादुररव श्रवणे सुणी, किम रहीइ हो कंत विण किरतार कि ॥३॥ श्रावण भूमि सुहामणी, गयणि छाया हो काला वादल वृंद कि, जलधर वरसइ सरवडें, रंग रमता हो थाइ मनि आणंद कि ||४||
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